केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट में किया समलैंगिक विवाह का विरोध, कहा- हमारे मूल्य मान्यता नहीं देते
दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता देने के लिए लगाई जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई की। केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और मूल्य समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति पीड़ित है तो वह कोर्ट आ सकता है। उन्होंने याचिकाकर्ता को उन लोगों की सूची सौंपने को कहा, जिनका समलैंगिक विवाह का पंजीयन अटका हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को रद्द कर दिया था। उसमें कहा गया था कि सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे। हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था। ऐसे में वर्तमान में समलैंगिग विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन सरकार उनका पंजीयन नहीं कर रही है।
LGBT समुदाय के चार सदस्यों ने दायर की थी याचिका
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार गत 8 सितंबर को LGBT समुदाय के चार सदस्यों ने याचिका दायर करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिकों को विवाह करने का अधिकार देने की अपील की थी। इसमें कहा था कि समलैंगिक विवाह पर रोक उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। याचिका के अनुसार हिंदू विवाह अधिनियम नहीं कहता कि शादी महिला-पुरुष के बीच ही हो। साल 2018 से भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है, लेकिन फिर भी समलैंगिक शादी अपराध क्यों है।
शादी को मान्यता नहीं देना संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने LGBT समुदाय को मान्यता दे रखी है तो फिर शादी को मान्यता न देना संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। ऐसे में उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पालना के अनुसार समलैंगिक शादी की अनुमति मिलनी चाहिए।
कानून प्रणाली नहीं देती समलैंगिक विवाह को मान्यता- मेहता
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस डीएन पटेल और प्रतीक जालान की खंडपीठ के समक्ष कहा कि अदालत को ध्यान में रखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। याचिकाकर्ता समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता की मांग नहीं कर सकते। उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निषिद्ध संबंधों की डिग्री के खंड को पढ़ते हुए कहा कि यह "पुरुष" और "महिला" को संदर्भित करता है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दी यह दलील
याचिकाकर्ताओं के वकील राघव अवस्थी ने कहा कि 21वीं सदी में दूसरी शादियों की तरह समलैंगिक शादियों को समान अधिकार न दिए जाने का कोई कारण नहीं है। वहीं याचिकाकर्ता गोपी शंकर ने कहा कि समानता बहुत जरूरी है। LGBT समुदाय के बहुत से लोगों की शादी को पंजीकृत नहीं कियाज रहा है। उन्होंने 2019 के मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले का भी जिक्र किया जिसमें एक व्यक्ति और एक ट्रांसवुमन की शादी को बरकरार रखा गया था।
हाईकोर्ट ने दिया पीड़ितों की सूची सौंपने का आदेश
कोर्ट ने कहा, "फिलहाल हम पूछ रहे हैं कि जनहित याचिका क्या सुनवाई योग्य है?" हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति पीड़ित हैं तो वो आ सकते हैं। जनहित याचिका का कोई सवाल नहीं है। याचिकाकर्ता उन लोगों की सूची पेश करें जिनकी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक होने पर शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले की सुनवाई 21 अक्टूबर तक के लिए टाल दी।