कौन है अब्दुल करीम टुंडा; 1993 सिलसिलेवार बम धमाकों का मुख्य आरोपी, जिसे बरी किया गया?
राजस्थान के एक विशेष कोर्ट ने आज 1993 विस्फोट मामले में लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष बम निर्माता अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया। सबूतों की कमी के कारण टुंडा को रिहा किया गया है। हालांकि, 2 आतंकवादियों इरफान और हमीदुद्दीन को दोषी करार दिया गया है और इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। आइए जानते हैं हैं कौन है टुंडा और उस पर क्या आरोप थे।य
कौन है अब्दुल करीम टुंडा?
75 वर्षीय टुंडा का जन्म 1941 में हुआ था। वह हापुड़ जिले के पिलखुवा कस्बे का निवासी है। अब्दुल करीम ने धातुकर्मी, मोची, बढ़ई, नाई और चूड़ी बनाने वाले के रूप में काम किया है। उसने 2 शादियां की थीं। शुरू से ही उसकी गतिविधियां संदिग्ध थीं। उसने पाकिस्तान में जाकर आतंकी ट्रेनिंग भी ली थी। उसके खिलाफ दिल्ली के विभिन्न थानों में 21 और गाजियाबाद में 13 मामलों के अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में कई मामले दर्ज हैं।
टुंडा नाम कैसे पड़ा?
1985 में टुंडा राजस्थान के टोंक जिले की एक मस्जिद में जिहाद की बैठक के दौरान एक पाइप गन चलाकर दिखा रहा था, तब गन के फटने से उसका हाथ उड़ गया। इसके बाद ही उसका नाम टुंडा पड़ा था। 1984 में मुंबई के भिवंडी के दंगों में उसके रिश्तेदार मारे गए थे, जिसके बाद उसने आतंक की राह पकड़ ली। दंगों के कुछ हफ्तों बाद टुंडा ने जिहाद पर कुरान की आयतें पढ़ना शुरू की थीं।
1990 के दशक में पाकिस्तान में रहा टुंडा
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक में टुंडा पाकिस्तान में अब्दुल कुद्दूस के नाम से रहता था और उसके पाकिस्तानी पासपोर्ट पर भी यही नाम था। इसी दौरान वह डॉक्टर जलीस अंसारी (1993 के मुंबई ट्रेन विस्फोटों का आरोपी) और लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद जैसे आतंकियों के संपर्क में आया था। पाकिस्तान के ISI से ट्रेनिंग लेने के बाद ही टुंडा लश्कर का सदस्य बना था।
1993 के सीरियल धमाकों से जुड़ा मामला क्या है?
5 और 6 दिसंबर, 1993 को लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों में एक के बाद एक बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान चली गई और व्यापक संपत्ति की क्षति हुई थी। इस घटना को बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी का बदला कहा गया था। इस मामले में 17 आरोपियों को पकड़ा गया था, जिनमें से 3 टुंडा, हमीदुद्दीन, इरफान अहमद पर गुरुवार को फैसला सुनाया गया।
टुंडा पर कब तय हुए थे आरोप?
28 फरवरी 2004 को कोर्ट ने इस मामले में 16 आरोपियों को सजा सुनाई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 4 आरोपियों को बरी कर बाकी की सजा कायम रखी, जो जयपुर की जेल में बंद हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने टुंडा को मास्टरमाइंड माना था और 2013 में उसे नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार किया गया था। 30 सितंबर, 2021 को कोर्ट ने 1993 के 10 धमाकों के मामले में टुंडा और अन्य 2 पर आरोप तय किए थे।
टुंडा को क्यों मिली रिहाई?
टुंडा के वकील शफिकतुल्ला सुल्तानी ने सुनवाई के बाद कहा, "कोर्ट ने अब्दुल करीम टुंडा को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। CBI अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ कोई भी मजबूत सबूत पेश करने में विफल रही।" इससे पहले मार्च, 2016 में दिल्ली के एक कोर्ट ने भी कहा था कि पुलिस यह साबित नहीं कर सकी कि टुंडा बम बनाता था। इस बात के कोई सबूत नहीं है कि टुंडा लश्कर-ए-तैयबा का बम निर्माता हो सकता है।
2017 में एक मामले में कोर्ट ने सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा
अक्टूबर, 2017 में सोनीपत की एक कोर्ट ने टुंडा को 1996 के सोनीपत विस्फोट मामले में दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अब भी वह सजा काट रहा है। बता दें कि 2001 में संसद भवन पर हमले के बाद पाकिस्तान ने जिन 20 आतंकियों के भारत प्रत्यर्पण की मांग की थी, उसमें टुंडा भी शामिल था। टुंडा पर भारत में कई आतंकी हमलों के आरोप हैं।