बैंक धोखाधड़ी मामला: DFHL के वधावन बंधुओं को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने दिया गिरफ्तारी का आदेश
आवास ऋण देने वाली कंपनी DFHL के पूर्व प्रमोटर वधावन बंधुओं को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। बुधवार को कोर्ट ने कथित बैंक धोखाधड़ी मामले में कपिल वधावन और उनके भाई धीरज को वैधानिक जमानत देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने मामले में वधावन बंधुओं की तत्काल गिरफ्तारी का आदेश देते हुए कहा, "निचली कोर्ट ने गलती की और आरोपत्र दायर होने के बाद आरोपी वैधानिक जमानत नहीं मांग सकते हैं।"
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बेला त्रिवेदी और एससी शर्मा की बेंच ने निचली कोर्ट से वधावन बंधुओं की जमानत याचिका पर नए सिरे से सुनवाई करने को कहा है। कोर्ट ने कहा, "हमें ये मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि आरोपियों के खिलाफ निर्धारित समयसीमा में आरोपपत्र दायर किया गया और कथित अपराधों पर विशेष कोर्ट ने संज्ञान लिया, लेकिन आरोपियों को धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत इस आधार नहीं दी जा सकती कि अन्य आरोपियों की जांच लंबित है।"
CBI ने की थी आरोपियों की जमानत के खिलाफ अपील
आरोपियों को ट्रायल के दौरान इस आधार पर संवैधानिक जमानत दी गई कि जांच अवधि के भीतर उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं किए गए। इसके बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और आरोपियों की जमानत रद्द करने की मांग की। जां एजेंसी का दावा है कि आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जांच अवधि में आरोपपत्र दाखिल किए गए। बता दें कि CBI ने 19 जुलाई, 2023 को वधावन बंधुओं को गिरफ्तार किया था।
क्या है वधावन बंधुओं के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला?
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने DHFL के पूर्व प्रोमटर वधावन बंधुओं पर 17 बैंकों के समूह से कथित तौर पर 34,615 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। FIR में कहा गया है कि आरोपियों ने कंपनी में रहते हुए कंसोर्टियम को भारी ऋण स्वीकृत करने के लिए प्रेरित किया और इससे बैंकों को भारी नुकसान हुआ। CBI ने अपने आरोपपत्र में दावा किया है कि DFHL के बही-खातों में आरोपियों ने कथित तौर पर हेराफेरी की थी।
वधावन बंधुओं के खिलाफ किन धाराओं में दर्ज है FIR?
शिकायत के आधार पर वधावन बधुओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120B, 409, 420, 477A और भ्रष्टाचार अधिनियम, 1988 की संबंधित धाराओं के तहत FIR दर्ज की गई।
न्यूजबाइट्स प्लस
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 (2) के तहत, अगर जांच एजेंसी 90 दिनों के भीतर किसी आपराधिक मामले में जांच के बाद आरोपपत्र दाखिल करने में विफल रहती है तो आरोपी वैधानिक जमानत का हकदार है। मामले में CBI ने 88वें दिन आरोपपत्र दाखिल किया था। आरोपियों पर धारा 409 (लोक सेवक या बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात) के तहत भी मामला दर्ज है। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम सजा उम्रकैद है।