'लॉस्ट' रिव्यू: यामी गौतम ने संभाला मोर्चा, लेकिन कहानी में मात खा गई फिल्म
अभिनेत्री यामी गौतम काफी समय से फिल्म 'लॉस्ट' को लेकर सुर्खियों में थीं। फिल्म की कहानी और उनके किरदार से जुड़ी दिलचस्प जानकारियों ने इस फिल्म की रिलीज को लेकर सिनेप्रेमियों की दिलचस्पी बढ़ा दी थी। 16 फरवरी से ZEE5 पर उनकी यह फिल्म स्ट्रीम हो गई है। अनिरूद्ध रॉय चौधरी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में पंकज कपूर, तुषार पांडे और पिया बाजपेयी जैसे कलाकार भी हैं। अगर आप 'लॉस्ट' देखने वाले हैं तो पहले पढ़िए इसका रिव्यू।
प्यार और राजनीति के बीच सच तलाशतीं यामी
यामी फिल्म में एक खोजी पत्रकार विधि साहनी की भूमिका में है, जो कोलकाता में गुमशुदा हुए एक युवक ईशान उर्फ तुषार पांडे के बहाने एक बड़ी तफ्तीश सामने लाती है। कहानी तब करवट लेती है, जब उसे पता चलता है कि ईशान की गर्लफ्रेंड में किसी पहुंचे हुए नेता की दिलचस्पी है। केस छोड़ने को लेकर विधि पर राजनीतिक दबाव बनाया जाता है, डराया-धमकाया जाता है। क्या विधि लापता शख्स को खोज पाएगी? इसका जवाब फिल्म देखकर ही मिलेगा।
अपने किरदार में छाईं यामी
यामी अब बड़ी सूझ-बूझ से अपने लिए किरदारों का चयन कर रही हैं। 'ए थर्सडे' के बाद यामी ने फिर अपने कंधों पर फिल्म की जिम्मेदारी ली और इसके साथ पूरा इंसाफ किया। यामी ने फिर साबित कर दिया है कि किरदार चाहे जैसा भी हो, वह हर किसी में खरी उतरने का माद्दा रखती हैं। खोजी पत्रकार के रूप में जिस तरह से उन्होंने अपनी भूमिका की नब्ज को शुरुआत से लेकर अंत तक पकड़े रखा, वो काबिल-ए-तारीफ है।
पकंज भी बने फिल्म देखने का बहाना
यामी के नाना के रूप में पंकज कपूर का काम भी अव्वल नंबर का है। उनका अभिनय इतना सधा हुआ है कि आप पूरी फिल्म उनके लिए देख सकते हैं, वहीं यामी के पति बने नील भूपलम का फिल्म में होना न होना बराबर है। पिया बाजपेयी के हिस्से जो आया, उसे भुनाने में वह सफल रहीं। राजनेता के रूप में राहुल खन्ना भी कमाल लगे। तुषार के किरदार को कहानी के आकाश में उड़ान भरने की जगह नहीं मिली।
निर्देशन से लापता दिखे अनिरूद्ध
पिछली बार 'पिंक' जैसी शानदार फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके अनिरूद्ध का जादू 'लॉस्ट' में कतई नहीं चल पाया। गुमशुदा लोगों और उनके परिजनों के दर्द को बयां करने की उनकी इस असफल कोशिश ने पूरी कहानी का कबाड़ा कर दिया। दूसरी तरफ क्लाइमैक्स दिखाने में की गई हड़बड़ी भी कहानी को और नीचे गिराती है। लेखक और निर्देशक के बीच सांमजस्य की कमी फिल्म में बड़ी खलती है। फिल्म अपने नाम की तरह खोई-खोई सी लगती है।
सिनेमैटोग्राफी और संगीत
कैमरे के सहारे फिल्म में सस्पेंस और थ्रिल भरने की कोशिश तो है, लेकिन कैमरे ने फिल्म के दृश्यों और किरदारों के सही भाव पकड़ने में चूक कर दी, वहीं गीत-संगीत भी कहानी के लिए मददगार साबित नहीं हुआ। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर ठीक-ठाक है।
यहां भी हो गई चूक
फिल्म के डायलॉग रोचकता भरने में नाकाम रहे। दूसरे भाग में सस्पेंस फुस्स हो गया। कहानी बहुत जल्दी पटरी से उतर जाती है। दलित, माओवादी जैसे दूसरे मसले दिखाने की होड़ में निर्माता-निर्देशक असल विषय से भटक गए। फिल्म का मुख्य मुद्दा गुमशुदगी पर था, जिसकी तह पर जाए बगैर कहानी मकसद और मुद्दे के दरम्यान में उलझी रह गई। इसमें कसावट की कमी भी बड़ी खलती है। कहीं पर रफ्तार इतनी धीमी है तो कहीं जरूरत से ज्यादा तेज।
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- फिल्म उन पत्रकारों के लिए एक सम्मान है, जो सच्चाई की खोज में अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। उनके लिए फिल्म देखी जा सकती है, वहीं यामी और पंकज के फैन हैं तो यह जरूर आपका दिन बना देगी। क्यों न देखें? अगर आप अच्छी कहानी या सस्पेंस की चाह में फिल्म देखने वाले हैं तो शर्तिया आप निराश होंगे। यामी की मेहनत के लिए 'लॉस्ट' को हमारी तरफ से 5 में से 2 स्टार।