'दो पत्ती' रिव्यू: फिल्म की कमजोर कड़ी बनीं काजोल, दोहरी भूमिका में कृति सैनन भी फेल
कृति सैनन फिल्म 'दो पत्ती' को लेकर सुर्खियों में हैं। यह उनके प्रोडक्शन हाउस की पहली फिल्म है। इस फिल्म में न सिर्फ कृति ने अभिनय किया है, बल्कि वह इससे बतौर सह-निर्माता जुड़ी हैं। शशांक चतुर्वेदी के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी कनिका ढिल्लों ने लिखी है। फिल्म में काजोल और अभिनेता शहीर शेख ने भी अहम भूमिका निभाई है। 'दो पत्ती' 25 अक्टूबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। आइए जानें कैसी है फिल्म।
2 जुड़वां बहनों के इर्द-गिर्द बुनी गई फिल्म की कहानी
कहानी सौम्या और शैली (कृति) 2 जुड़वां बहनों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका मिजाज एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है। सौम्या शांत, सहमी और सीधी-सादी सी है, वहीं शैली एकदम तेज-तर्रार और बिंदास। दोनों एक-दूसरे की बहनें कम दुश्मन ज्यादा हैं। दोनों बहनों को ध्रुव नाम के रईस और बिगड़ैल लड़के (शहीर शेख) से प्यार होता है, जिसके बाद ऐसा कुछ होता है कि उनकी जिंदगी बिखर जाती है। फिल्म में काजोल ने पुलिस इंस्पेक्टर विद्या ज्योति का किरदार निभाया है।
कैसी रही कलाकारों की एक्टिंग?
कृति ने डबल रोल किया है, लेकिन 2 अलग-अलग किरदारों में उनके हाव-भाव एक जैसे लगते हैं। डबल रोल के लिए डबल मेहनत करने से कृति चूक गईं। हालांकि, काजोल से वह फिर भी बेहतर लगती हैं। अभिनय की परीक्षा में काजोल फेल हो गई हैं। 'लेडी सिंघम' बनीं काजोल ने हरियाणवी की टांग तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनका किरदार उन पर दूर-दूर तक फिट नहीं बैठता। उधर शहीर जरूर अपने शानदार अभिनय से असर छोड़ जाते हैं।
निर्देशक के निर्देशन में नहीं दम
निर्देशक ने फिल्म में भले ही घरेलू हिंसा या मानसिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषय उठाए, लेकिन ऐसा लगता है जैसे कि उन्होंने पुरानी थाली में नए पकवान परोस दिए। अगर शशांक पुराने रटे-रटाए फॉर्मूले से इतर कुछ और आजमाने की कोशिश करते तो शायद कुछ बेहतर परिणाम निकलकर आता। उनकी बेतरतीब कहानी, लचर लेखन और कमजोर निर्देशन ने सारा खेल बिगाड़ दिया। उधर देसी पुलिसवाली की भूमिका में काजोल का चयन कर उन्होंने फिल्म का और बंटाधार कर दिया है।
ये भी हैं कमियां
फिल्म में कई अहम राज खुलने से पहले ही समझ में आ जाते हैं, वहीं क्लाइमैक्स निराश करता है। पटकथा बहुत कमजोर है। उधर कहानी देख कोई नयापन नहीं लगता, वहीं फिल्म का गीत-संगीत भी उत्साह नहीं जगाता। बची-खुची कसर काजोल का अंग्रेजी फिल्मों और वेब सीरीज से प्रेरित किरदार पूरी कर देता है। न जाने क्या सोचकर उन्होंने पुलिस की भूमिका के लिए हामी भरी। उधर औसत से लिखे गए संवादों ने फिल्म को और औसत बनाकर रख दिया।
देखें या न देखें?
क्यों देखें? 'दो पत्ती' अपने ही रिस्क पर देखना। फिर मत कहिएगा कि पहले बताया नहीं। फिल्म में देखने लायक कुछ भी नहीं। क्यों न देखें? काजोल को पहली बार पुलिस की वर्दी में देखने के लिए लालायित हैं तो फिल्म ना देखें, क्योंकि इसके बाद आप उन्हें कभी वर्दी में नहीं देखना चाहेंगे। शुक्र है यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हुई, वरना बेशक आप यह गाना गुनगुना रहे होते- 'ये कहां आ गए हम....?' न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5