मंदी की चपेट में आई जर्मनी की अर्थव्यवस्था, लगातार दूसरी तिमाही में GDP में गिरावट
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी औपचारिक तौर पर आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई है। 2023 की पहली तिमाही में जर्मनी की अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी गई। पहली तिमाही में जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 0.3 फीसदी की गिरावट आई है। इससे पहले 2022 की चौथी तिमाही में जर्मनी की GDP 0.5 फीसदी सिकुड़ी थी। बता दें जब GDP में लगातार 2 तिमाही में नकारात्मक वृद्धि दर्ज होती है तो उसे मंदी माना जाता है।
महंगाई ने बिगाड़ा जर्मनी का गणित
सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल की शुरुआत से ही महंगाई जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर बोझ बनी हुई है। घरेलू उपभोक्ता खपत में भी हर तिमाही के आधार पर 1.2 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। हालिया तिमाही में सरकारी खर्च में भी 4.9 फीसदी की कमी आई। इससे पहले जर्मनी के सांख्यिकी विभाग ने बेहद हल्की मंदी की आशंका व्यक्त की थी और मार्च तिमाही के दौरान GDP वृद्धि दर शून्य रहने की उम्मीद जताई गई थी।
यूक्रेन युद्ध का जर्मनी पर हुआ असर
रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से जर्मनी की ऊर्जा आपूर्ति बड़े पैमाने पर बाधित हुई है। जर्मनी पर यूक्रेन युद्ध की वजह से आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। कुछ दिनों पहले ही जर्मनी ने यूक्रेनी सेना को करीब 24,000 करोड़ रुपये के सैन्य उपकरण देने की घोषणा की है। जर्मनी के करीब 100 से ज्यादा औद्योगिक क्षेत्र रूस से माल और उत्पादों का आयात-निर्यात करते थे, लेकिन युद्ध की वजह से ये कारोबार ठप हो गया है।
जर्मनी के लिए कुछ मोर्चों पर राहत की भी खबर
ताजा जारी आंकड़ों में जर्मनी के लिए थोड़ी राहत की खबर भी है। 2022 की कमजोर दूसरी छमाही के बाद इस साल की पहली तिमाही में निवेश बढ़ा है। पिछली तिमाही की तुलना में मशीनरी और उपकरणों में निवेश में 3.2 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि निर्माण में निवेश 3.9 फीसदी बढ़ा है। व्यापार के मोर्चे पर भी एक अच्छी खबर है। देश का निर्यात 0.4 फीसदी बढ़ा है, जबकि आयात 0.9 फीसदी कम हुआ है।
कोरोना के बाद से ही जूझ रही है जर्मनी की अर्थव्यवस्था
2020 में कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बाद से पैदा हुए हालातों की वजह से जर्मनी की अर्थव्यवस्था में गिरावट की शुरुआत हुई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कच्चे माल की कमी और कामगार न मिलने ने परेशानी को और बढ़ा दिया। हालांकि, जर्मन सेंट्रल बैंक ने 2021 की आखिरी तिमाही में हालात सुधरने के संकेत दिए थे, लेकिन वो पूरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए काफी नहीं थे।