कौन हैं कंजर्वेटिव पार्टी की नई नेता केमी बेडेनोच, जो लेंगी ऋषि सुनक की जगह?
ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी ने शनिवार को केमी बेडेनोच अपना नया नेता चुन लिया है। बेडेनोच ने अपने प्रतिद्वंद्वी रॉबर्ट जेनेरिक को करीब एक लाख पार्टी सदस्यों के वोट से हराया है। पार्टी प्रमुख के साथ ही बेडेनोच अब 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में नेता प्रतिपक्ष भी होंगी, जो (पूर्व प्रधानमंत्री) ऋषि सुनक की जगह लेंगी। बता दें कि कजंर्वेटिक पार्टी को इस साल आम चुनाव में लेबर पार्टी से हार झेलनी पड़ी थी। आइए जानते हैं केमी बेडेनोच कौन हैं।
कौन है बेडेनोच?
44 वर्षीय बेडेनोच का जन्म लंदन के विम्बलडन उपनगर एक नाइजीरियन परिवार में हुआ था, लेकिन उनका शुरुआती जीवन नाइजीरिया में ही बीता था। स्कूली शिक्षा के बाद वह महज 16 साल की उम्र में बेहतर जीवन की तलाश में लंदन लौट आईं। उस दौरान उन्होंने मैकडॉनल्ड्स में काम करके अपना खर्च चलाया था। ससेक्स विश्वविद्यालय से कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक बेडेनोच ने राजनीति में प्रवेश करने के लिए बैंकिंग उद्योग को छोड़ने का निर्णय किया था।
बेडेनोच ने 25 साल की उम्र में ली कंजर्वेटिव पार्टी की सदस्यता
बेडेनोच 25 वर्ष की आयु में कंजर्वेटिव पार्टी में शामिल हो गईं और तेजी से आगे बढ़ने लगी। 2017 में संसद के लिए निर्वाचित होने से पहले वह लंदन विधानसभा की सदस्य रही थीं। 2 साल बाद प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने उन्हें संसदीय अवर सचिव नामित कर दिया। साल 2021 में वह महिला समानता मंत्री के पद पर पहुंच गई और 2022 में जॉनसन के उत्तराधिकारी लिज ट्रस ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए राज्य सचिव नियुक्त कर दिया।
टकराव के बीच पार्टी से मिलता रहा समर्थन
बेडेनोच की तेज प्रगति के बीच उनका मीडिया, मशहूर हस्तियों और उनके अपने अधिकारियों के साथ कई बार टकराव भी हुआ, लेकिन उस समय के कंजर्वेटिव प्रशासन ने उनका समर्थन किया। बेडेनोच पूरी तरह से ब्रेक्सिट समर्थक हैं, जिसके कारण उन्हें कंजर्वेटिव मतदाताओं का प्रबल समर्थन मिला है। उन्होंने यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के ब्रिटेन के फैसले को 'यूनाइटेड किंगडम की परियोजना में अब तक का सबसे बड़ा विश्वास मत' बताया था।
कंजर्वेटिवों के लिए क्या है बेडेनोच की योजनाएं?
बेडेनोच को पार्टी को मजबूत करने वाली नेता के रूप में देखा जा रहा है। उनकी नजर सिर्फ वामपंथी लेबर सरकार पर ही नहीं, बल्कि रिफॉर्म यूके पार्टी पर भी है, जिसका नेतृत्व अनुभवी ब्रेक्सिट प्रचारक निगेल फरेज कर रहे हैं। फरेज की अपील ने जुलाई के चुनाव में पारंपरिक कंजर्वेटिव मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया था। हालांकि, बेडेनॉच के नेतृत्व में दक्षिणपंथी झुकाव की संभावना पार्टी के अधिक उदारवादी पक्ष और कुछ मतदाताओं को अलग-थलग कर सकती है।
पार्टी की छवि सुधारना बेडेनोच के सामने सबसे बड़ी चुनौती
नए नेता के रूप में बेडेनोच के सामने कंजर्वेटिव पार्टी की छवि को सुधारना सबसे बड़ी चुनौती होगी। उन्हें लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की नीतियों पर भी मजबूत प्रतिक्रिया देनी होगी, खासकर अर्थव्यवस्था और आव्रजन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर। उनके सामने 2029 के आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी को सत्ता में लाने की भी चुनौती होगी। ऐसे में उन्हें आने वाले समय में बड़ी सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे और पार्टी को मजबूत करना होगा।
बेडेनोच का ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के मुद्दे पर सख्त रहा है रुख
बेडेनोच आव्रजन और ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के मुद्दे पर सख्त रुख के लिए जानी जाती हैं। विरोधी उन्हें लड़ाकू नेता के रूप में देखते हैं। हालांकि, बेडेनोच का कहना है कि उन्हें लड़ना पसंद नहीं है, लेकिन वह लड़ने से डरती नहीं हैं। खासकर वामपंथी बकवास के खिलाफ और रूढ़िवादी आदर्शों के लिए। बता दें, पार्टी के इस आंतरिक चुनाव की प्रक्रिया महीनों तक चली। शुरुआत में इसमें 6 उम्मीदवार थे, लेकिन बाद में संख्या 2 ही रह गई।
बेडेनोच की जीत के भारत के लिए क्या हैं मायने?
बेडेनोच ब्रिटेन के अगले आम चुनावों (2029) में प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल हो सकती हैं। उनकी जीत से संकेत मिलता है कि ब्रिटेन की सबसे पुरानी सियासी पार्टी अधिक दक्षिणपंथ की ओर जा रही है। ऐसे में पार्टी आव्रजन, जलवायु परिवर्तन और संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर कड़ा रुख अपना सकती है। बेडेनोच ने हाल ही में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर कहा था कि अतिरिक्त वीजा की मांग के कारण FTA समझौते को रोक दिया था।