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    कोरोना: डेल्टा प्लस वेरिएंट के बारे में अभी तक क्या जानकारी सामने आई है?

    कोरोना: डेल्टा प्लस वेरिएंट के बारे में अभी तक क्या जानकारी सामने आई है?

    लेखन प्रमोद कुमार
    Jun 15, 2021
    11:21 am

    क्या है खबर?

    सबसे पहले भारत में मिले कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) में अब एक और म्यूटेशन हुआ है। इस म्यूटेशन के साथ इसे 'डेल्टा प्लस' या 'AY.1' वेरिएंट के नाम से जाना जा रहा है।

    शुरुआती आंकड़ों से पता चला है कि यह वेरिएंट एंटीबॉडी कॉकटेल से मिली सुरक्षा को चकमा देने में कामयाब हो रहा है।

    बता दें कि कोरोना डेल्टा बेहद संक्रामक है और भारत में आई महामारी की दूसरी लहर के पीछे इसका मुख्य हाथ था।

    कोरोना वायरस

    डेल्टा वेरिएंट में हुआ K417N म्यूटेशन

    वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग के विशेषज्ञ वैज्ञानिक बेनी जॉली ने ट्विटर पर लिखा कि डेल्टा वेरिएंट की कुछ सीक्वेंस में K417N स्पाइक म्यूटेशन हुआ है। 10 देशों से लिए गए सैंपलों की जीनोम सीक्वेंसिंग में यह म्यूटेशन पाए गए हैं। इन सीक्वेंसेस को AY.1 (B.1.617.2.1) लिनिएज के तौर पर रखा गया है।

    उन्होंने बताया कि बीटा वेरिएंट (B.1.351) में भी K417N म्यूटेशन पाया गया था।

    इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने भी इस वेरिएंट की पहचान की है।

    कोरोना का नया वेरिएंट

    प्रसार कम, चिंता की बात नहीं- वैज्ञानिक

    ब्रिटेन की स्वास्थ्य संस्था पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने कोरोना वेरिएंट पर अपनी ताजा रिपोर्ट में लिखा है कि 7 जून तक भारत से छह जीनोम में डेल्टा वेरिएंट पाया गया है। संस्था ने अब तक नई K417N म्यूटेशन के साथ डेल्टा वेरिएंट की 63 जीनोम की पुष्टि की है।

    हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी इसे लेकर चिंता की बात नहीं है क्योंकि डेल्टा प्लस वेरिएंट का प्रसार बहुत कम है।

    जानकारी

    वैक्सीन लगवाने के बाद भी संक्रमित पाए गए दो लोग

    रिपोर्ट में 36 कोरोना संक्रमितों में इस वेरिएंट का जिक्र किया गया है। इनमें से दो ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण हुआ है। नए वेरिएंट से संक्रमित व्यक्तियों में से अधिकतर नेपाल, तुर्की आदि देशों की यात्रा कर इंग्लैंड लौटे थे।

    बयान

    भारत में इस वेरिएंट को लेकर वैज्ञानिक क्या कह रहे हैं?

    CSIR से संबंधित और दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) से जुड़े विनोद स्कारिया ने कहा कि कोरोना महामारी फैलाने वाले SARS-COV-2 के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन होने की वजह से डेल्टा प्लस वेरिएंट बना है। स्पाइक प्रोटीन की मदद से ही वायरस इंसानी शरीर में घुसकर सेल्स को संक्रमित करता है।

    उन्होंने कहा कि अभी यह भारत में तेजी से नहीं फैल रहा और अधिकतर सीक्वेसिंग यूरोप और अमेरिका आदि से आई हैं।

    कोरोना वायरस

    संक्रामक होने के लिए म्यूटेशन का सहारा लेते हैं वायरस

    IGIB के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने समाचार एजेंसी PTI को बताया, "भारत में अभी इस वेरिएंट को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है।"

    उन्होंने कहा कि वैक्सीन की दोनों खुराकें ले चुके व्यक्ति के प्लाज्मा के खिलाफ डेल्टा प्लस वेरिएंट को जांचना होगा। इससे पता चलेगा कि यह वायरस रोग प्रतिरोधक क्षमता को चकमा दे रहा है या नहीं।

    उन्होंने कहा कि वायरस अधिक संक्रामक और खतरनाक होने के लिए म्यूटेशन का सहारा लेते रहते हैं।

    जानकारी

    प्रसार के तरीके को देखकर पता चलेगी संक्रामकता- बल

    पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्ट से जुडीं इम्युनोलॉजिस्ट विनिता बल कहती हैं कि डेल्टा वेरिएंट द्वारा एंटीबॉडी कॉकटेल से मिली सुरक्षा को चकमा देना इस बात का नहीं दर्शाता है कि यह अधिक गंभीर है।

    वो कहती हैं इसके प्रसार के तरीके को देखकर यह कहा जाएगा कि यह वेरिएंट कितना संक्रामक है। अगर कोई व्यक्ति नए वेरिएंट से संक्रामक हो रहा है तो इसकी अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए।

    कोरोना वायरस

    कैसे बनते हैं वायरस के नए वेरिएंट?

    कोरोना महामारी फैलाने के पीछे SARS-CoV 2 वायरस का हाथ है। वायरस के DNA में बदलाव को म्यूटेशन कहा जाता है। ज्यादा म्यूटेशन होने पर वायरस नया रूप ले लेता है, जिसे नया वेरिएंट कहा जाता है।

    वायरस के वेरिएंट सामने आने के कई कारण हैं। लगातार वायरस का फैलना इनमें से एक है।

    कोरोना से संक्रमित हर नया मरीज वायरस को म्यूटेट होने का मौका देता है। ऐसे में मरीज बढ़ने के साथ-साथ वेरिएंट की संभावना बढ़ जाती है।

    जानकारी

    वायरस में म्यूटेशन होने के क्या कारण हैं?

    सरल भाषा में समझें तो SARS-CoV-2 का जेनेटिक कोड लगभग 30,000 अक्षरों के RNA का एक गुच्छा है।

    जब वायरस इंसानी कोशिकाओं में प्रवेश करता है तो यह वहां अपनी तरह के हजारों वायरस पैदा करने की कोशिश करता है। कई बार इस प्रक्रिया के दौरान नए वायरस में पुराने का DNA पूरी तरह 'कॉपी' नहीं हो पाता है।

    ऐसी स्थिति में हर कुछ हफ्तों के बाद वायरस म्यूटेट हो जाता है, मतलब उसका जेनेटिक कोड बदल जाता है।

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