नेपाल का गढ़ीमाई महोत्सव क्या है, जिसे दुनिया का सबसे खूनी उत्सव माना जाता है?
भारत के पड़ाेसी देश नेपाल में हर 5 साल में मनाया जाने वाला हिंदू धार्मिक त्योहार गढ़ीमाई सामूहिक पशु बलि के कारण दुनिया के सबसे खूनी त्योहार के रूप में कुख्यात है। यह महोत्सव सदियों पुराना है और इसमें हिंदू देवी गढ़ीमाई को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की बलि दी जाती है। भक्तों का मानना है कि इससे समृद्धि आती है। इसमें चूहे, कबूतर, बकरी और भैंस की बलि होती है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
साल 2019 में दी गई थी ढाई लाख पशुओं की बलि
ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल (HSI) ने कहा कि 2019 में इस महोत्सव में लगभग 2.50 लाख जानवरों की बलि दी गई थी। गढ़ीमाई महोत्सव में पशु बलि की प्रथा बारा जिले के बरियारपुर स्थित गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी द्वारा शुरू की गई थी। कहा जाता है कि चौधरी को सपना आया कि देवी गढ़ीमाई रक्त की बलि के बदले में समृद्धि देगी। शुरुआत में मानव रक्त चढ़ाने की बात थी, लेकिन चौधरी ने इसके बदले पशु रक्त चढ़ा दिया।
एक महीने तक चलता है महोत्सव
यह महोत्सव पूरे एक महीने चलता है और साल के अंत में अनुष्ठानिक पशु बलि के साथ समाप्त होता है। सामूहिक बलि के लिए भारत से भी पशु लाए जाते हैं। बलि के बाद चारों ओर खून ही खून नजर आता है।
पशु बलि को रोकने पर क्या कहता है कानून
इस साल महोत्सव से पहले पशु अधिकार कार्यकता भारतीय अधिकारियों के साथ सीमा पर एकत्र हुए और करीब 750 जानवरों को बचाया। बलि को रोकने के लिए नेपाल और भारत की अदालतों में याचिकाएं भी दायर हैं। 2009 में नेपाल सरकार ने कहा था कि वह धार्मिक भावनाओं के कारण पशु बलि रोकने के लिए बल का प्रयोग नहीं करेगी। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में नेपाल सीमा से सटे राज्यों को पशु परिवहन रोकने का आदेश दिया था।
मंदिर संचालकों का रुख और कानूनी लड़ाई
साल 2015 में मंदिर संचालकों ने दावा किया कि भविष्य के त्यौहार रक्तपात से मुक्त होंगे, लेकिन बाद में कहा कि भक्तों को बलि रोकने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। 2016 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने पशु बलि को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का आदेश दिया था। हालांकि, इस फैसले को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया और 2019 में बलि जारी रही। इसके बाद मंदिर संचालकों और सरकार के खिलाफ मामला दर्ज कर किया गया था।