सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिशन ने प्रतीक चिन्ह और लेडी जस्टिस की प्रतिमा बदलने पर आपत्ति जताई
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर बिना परामर्श सुप्रीम कोर्ट के प्रतीक चिन्ह और लेडी जस्टिस की प्रतिमा में हुए 'एकतरफा' बदलावों पर आपत्ति जताई है। कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में हुई बैठक में पास प्रस्ताव में कहा गया, "न्याय प्रशासन में हम समान रूप से भागीदार हैं, लेकिन जब ये परिवर्तन प्रस्तावित किए गए, तो हमारे ध्यान में नहीं लाए गए। हम इन परिवर्तनों के पीछे के तर्क से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।"
पुस्तकालय और कैफे की जगह संग्रहालय बनाने पर आपत्ति
लाइव लॉ के मुताबिक, एसोसिएशन ने पूर्व न्यायाधीशों के पुस्तकालय में संग्रहालय बनाने के प्रस्ताव पर भी आपत्ति जताई और कहा कि एसोसिएशन ने पहले भी पुस्तकालय का दायरा बढ़ाने और बार सदस्यों के लिए एक कैफे-कम-लाउंज की मांग की थी। समिति के सभी 21 सदस्यों द्वारा समर्थित प्रस्ताव में कहा गया, "हम उच्च सुरक्षा क्षेत्र में प्रस्तावित संग्रहालय का सर्वसम्मति से विरोध करते हैं और सदस्यों के लिए एक पुस्तकालय और एक कैफे-सह-लाउंज की मांग पर जोर देते हैं।"
प्रतीक चिन्ह और लेडी जस्टिस की प्रतिमा में क्या हुआ है बदलाव?
राष्ट्रपति ने 1 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में नए प्रतीक और ध्वज का अनावरण किया गया था। इसके अंतर्गत परंपरागत रूप से, लेडी जस्टिस मूर्ति की आंखों पर बंधी पट्टी को हटा दिया गया है और हाथ में तलवार की जगह संविधान को दिखाया गया है। कोर्ट के ध्वज के रूप में नीले रंग के झंडे पर अशोक चक्र, सुप्रीम कोर्ट की इमारत और संविधान है। इस पर संस्कृत श्लोक 'यतो धर्मस्ततो जय' लिखा है।
क्या बताता है नया प्रतीक चिन्ह?
लेडी जस्टिस की आंख पर पट्टी बंधी प्रतिमा दर्शाता था कि व्यक्ति की स्थिति की परवाह किए बिना निष्पक्ष न्याय किया जाएगा, जबकि आंख से पट्टी हटाने का उद्देश्य है कि कानून अंधा नहीं बल्कि सबको समान रूप से देखता है। पुरानी प्रतिमा के एक हाथ में तलवार त्वरित और अंतिम न्याय को दर्शाती थी, जबकि अब इसे हिंसा का प्रतीक बताते हुए उसकी जगह संविधान की किताब लाई गई है, जिसका अर्थ है कि देश संविधान से चलता है।