कितने घातक हैं कत्युषा रॉकेट, जिनका हिजबुल्लाह ने इजरायल पर हमले में किया है इस्तेमाल?
इजरायल और लेबनान के समूह हिजबुल्लाह के बीच करीब-करीब युद्ध जैसी स्थिति बन गई है। आज तड़के इजरायल ने लेबनान पर हवाई हमले किए थे, जिसके बाद हिजबुल्लाह ने भी 11 इजरायली सैन्य ठिकानों पर 320 से अधिक कत्युषा रॉकेट दागे हैं। बता दें कि कत्युषा रॉकेट हिजबुल्लाह का प्रमुख हवाई हथियार है, जिसे वो अक्सर इजरायल पर दागता रहता है। आइए आज इन रॉकेट के बारे में जानते हैं।
कत्युषा रॉकेट क्या हैं?
कत्युषा मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर (MRL) है, जिसे सोवियत संघ ने बनाया है। दरअसल, 1930 के दशक में सोवियत सैन्य इंजीनियर तोपखाने की क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए एक ऐसा हथियार बना रहे थे, जो एक बड़े क्षेत्र में बड़ी मात्रा में विस्फोटकों को गिरा सके। इसी के बाद सोवियत संघ में रिएक्टिव साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (RNII) में जॉर्जी लैंगेमक, बोरिस पेट्रोपावलोव्स्की और एंड्री कोस्टिकोव के नेतृत्व वाली टीम ने पहले कत्युषा रॉकेट को विकसित किया था।
रॉकेट को कैसे मिला नाम?
रॉकेट को कत्युषा नाम इसी नाम के एक गाने से मिला है, जिसे मिखाइल इसाकोवस्की ने लिखा है। इस गाने में कत्युषा नामक लड़की अपनी प्रेमी को याद कर रही है, जो युद्ध लड़ने गया हुआ है। सैनिकों के बीच ये गाना काफी प्रचलित थी, इसी वजह से रॉकेट को ये नाम मिला। इस रॉकेट को M-13 भी कहा जाता है, जहां 'M' का मतलब 'मीना' (रूसी में मेरा) है और '13' रॉकेट के कैलिबर (132 मिमी) को दर्शाता है।
पहली बार कब इस्तेमाल किए गए कत्युषा रॉकेट?
1930 के दशक में रॉकेट पर सोवियत संघ में खूब काम हुआ। अलग-अलग परीक्षणों में सफल रहने के बाद 1941 में पहली बार रॉकेट को दूसरे विश्वयुद्ध में इस्तेमाल किया गया। तब बेलारूस के ओरशा के पास एक जर्मन तोपखाने पर ये रॉकेट दागे गए। ये रॉकेट इतने प्रभावी साबित हुए कि धीरे-धीरे सोवियत तोपखाने की शक्ति का प्रतीक बन गए। इसके बाद ट्रक, ट्रैक्टर, टैंक और बख्तरबंद ट्रेनों में भी इन्हें माउंट किया गया।
कितने खतरनाक हैं कत्युषा रॉकेट?
कत्युषा रॉकेट एक खास इलाके में बड़ी संख्या में विस्फोट करने की अपनी क्षमता के कारण घातक माने जाते हैं। ये 4,000 से लेकर 11,500 मीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं। रॉकेट के अलग-अलग वैरिएंट आधा किलो से लेकर 28 किलोग्राम तक विस्फोटक ले जाने में सक्षम है। यही वजह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में सोवियत संघ ने इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। अभी भी कई देशों की सेना और संगठनों द्वारा इनका इस्तेमाल किया जाता है।
हिजबुल्लाह क्यों करता है इनका इस्तेमाल?
कत्युषा रॉकेटों को आसानी से एक से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है और छिपे हुए स्थानों से लॉन्च किया जा सकता है। हिजबुल्लाह आमतौर पर युद्ध की गुरिल्ला रणनीति अपनाता है, जिसमें ये रॉकेट काफी मददगार होते हैं। ट्रकों पर रखकर इन्हें कहीं भी ले जाया जा सकता है और तुरंत इनकी जगह भी बदली जा सकती है। इनका परिचालन भी आसान है और लागत भी कम है।