मनमोहन सिंह के निधन पर पाकिस्तान का ये गांव गम में क्यों डूबा हुआ है?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन से पूरा भारत शोक में डूबा हुआ है। देश-विदेश में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। इस बीच भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के एक गांव में भी मनमोहन को शिद्दत से याद किया जा रहा है। इस्लामाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित गाह नामक ये वही गांव है, जहां मनमोहन का जन्म हुआ था। उनके दोस्त यहां प्यार से उन्हें 'मोहना' बुलाते थे।
मनमोहन ने चौथी तक गाह में ही की पढ़ाई
मनमोहन का जन्म 26 सितंबर, 1932 को गाह में हुआ था। उनके जन्म के समय यह गांव झेलम जिले का हिस्सा था। अब ये पंजाब के चकवाल जिले में है। मनमोहन के पिता गुरमुख सिंह कपड़ा व्यापारी और उनकी मां अमृत कौर गृहिणी थीं। गांव के स्कूल रजिस्टर में मनमोहन का नंबर 187 दर्ज है। चौथी कक्षा के बाद मनमोहन घर वालों के साथ इस गांव से पहले चकवाल चले गए और बंटवारे के कुछ वक्त पहले अमृतसर आ गए।
चकवाल में ही है मनमोहन की पत्नी का पैतृक गांव
मनमोहन की पत्नी गुरशरण सिंह कौर का पैतृक गांव ढक्कू भी चकवाल जिले में है। यहां उनके पिता सरदार छत्तर सिंह कोहली इंजीनियर थे। द प्रिंट से बात करते हुए ढक्कू गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति चौधरी फिरोज खान ने कहा, "मैं छत्तर सिंह को जानता था और अक्सर अपना समय उनके घर पर बिताता था, जहां मैं अपने सिख दोस्तों के साथ खेला करता था।" बंटवारे के वक्त गुरणरण कौर केवल 10 साल की थीं।
गांव में मनमोहन को कैसे याद किया जा रहा है?
गाह में शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने के बाद लोग मनमोहन को श्रद्धांजलि देने दिवंगत पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ राजा मुहम्मद अली के घर पर इकट्ठा हुए। द प्रिंट के मुताबिक, यहां राजा आशिक अली ने कहा, "आज हमने गांव का मुखिया खो दिया है। 2004 में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने पर हम गांव के लोग खुश हुए थे। आज 2024 में हम उनके निधन पर शोक मना रहे हैं।"
मनमोहन के प्रधानमंत्री बनने पर गांव में मना था जश्न
मनमोहन के दोस्त मुहम्मद अशरफ के बेटे मुहम्मद जमान ने कहा, "मेरे पिता दौड़कर पास आए और कहा, 'ओए, अपना मोहना हिंदुस्तान का वजीर हो गया! उस रात पूरा गांव नाच रहा था। जो लोग मनमोहन से कभी नहीं मिले थे, उन्हें भी गर्व हुआ। पिताजी मुझे रात को मोहना की कहानियां सुनाया करते थे। मेरे पिता कहते थे, 'वह मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करता था। जब मैं खेलता, तब मोहना परीक्षा की तैयारी कर रहा होता था।"
गांव वाले बोले- हम उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे
राजा आशिक अली ने बताया कि 2004 में गाह में मनमोहन सिंह के 12 दोस्त जिंदा थे, जिनमें उनके चाचा भी शामिल थे। उन्होंने कहा, "गांव वाले मनमोहन सिंह के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, लेकिन दुर्भाग्य से वे नहीं आ सके। अब हम गाह में उनकी पत्नी और बेटियों के स्वागत का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। हम उनके अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते थे, लेकिन हम जानते हैं कि यह संभव नहीं है।"
2008 में मनमोहन से मिले थे बचपन के दोस्त
2008 में मनमोहन की दावत पर उनके बचपन के दोस्त राजा मोहम्मद अली भारत आए थे और उनसे मुलाकात की थी। तब मोहम्मद अली ने मनमोहन को शॉल, चकवाली जूती, गांव की मिट्टी और पानी दिया था। बदले में मनमोहन ने उन्हें पगड़ी और कढ़ाई वाली शाल दी थी। 2010 में राजा मोहम्मद अली की मौत हो गई थी। मनमोहन के दूसरे सहपाठी पैसों की तंगी के चलते भारत नहीं आ सके।