अमेरिका ने सुलेमानी के साथ एक और ईरानी कमांडर पर किया था हमला, लेकिन रहा असफल

अमेरिका ने जिस दिन ईरान के सबसे शक्तिशाली सैन्य अधिकारी जनरल कासिम सुलेमानी को मारा, उसी दिन उसने यमन में एक टॉप सीक्रेट ऑपरेशन के तहत ईरान के एक और सैन्य अधिकारी को निशाना बनाया था। लेकिन ये ऑपरेशन असफल रहा और इसी कारण इसकी जानकारी किसी को नहीं दी गई। किन कारणों से ये मिशन असफल रहा, इसके बारे में अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। इन दोनों स्ट्राइक को एक ही समय पर मंजूरी दी गई थी।
अमेरिकी अखबार 'द वाशिंगटन पोस्ट' ने चार अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से ये बातें कहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 3 जनवरी को जब अमेरिका ने बगदाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर ड्रोन हमला कर जनरल सुलेमानी को मारा, उसी समय यमन में ईरान के एक और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी अब्दुल रजा शहलाई पर भी निशाना साधा गया था। शहलाई इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) की उसी कुद्स फोर्स के अहम अधिकारी और कोषाध्यक्ष हैं जिसके प्रमुख सुलेमानी थे।
लेकिन शहलाई को मारने के लिए की गई अमेरिका की ये स्ट्राइक असफल रही। अधिकारियों के अनुसार, पेंटागन और फ्लोरिडा में सैन्य नेतृत्व दोनों स्ट्राइक पर निगरानी बनाए हुए थे और उनके बारे में साथ घोषणा करने की योजना बनाई गई थी। लेकिन शहलाई को मारने का प्रयास असफल रहने के कारण इसमें बदलाव करना पड़ा और केवल सुलेमानी के मारे जाने की घोषणा की गई। शहलाई के खिलाफ स्ट्राइक को टॉप सीक्रेट बनाकर दबा दिया गया।
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दोनों स्ट्राइकों को एक ही समय पर मंजूरी दी गई थी और शहलाई के खिलाफ स्ट्राइक की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई क्योंकि ये योजना के मुताबिक सफल नहीं हुई।
शहलाई यमन में ईरान की गतिविधियों को संभालता है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने ही शहलाई तक पहुंचाने वाली सूचना देने वाले को 1.5 करोड़ डॉलर देने की पेशकश की थी। अमेरिका का आरोप है कि शहलाई का अमेरिका और उसके सहयोगियों पर हमला करने का लंबा इतिहास है। 2007 में ईरान समर्थित लड़ाकों द्वारा कर्बला में पांच अमेरिकी सैनिकों की हत्या और 2011 में वाशिंगटन में सऊदी राजदूत पर हमले में उसके शामिल होने का आरोप है।
यमन में 2015 से गृह युद्ध चल रहा है और ये सऊदी अरब-ईरान के बीच शीत युद्ध का अखाड़ा बना हुआ है। तब हूती विद्रोहियों ने यमन की राजधानी सना पर कब्जा करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति अबद्राबुह मंसूर हादी को देश छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया था। सऊदी अरब हादी का समर्थन करता है और उसकी सेनाएं यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रही हैं। वहीं, ईरान पर हूती विद्रोहियों को समर्थन देने का आरोप लगता है।
'द वाशिंगटन पोस्ट' के इस खुलासे के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस दावे पर सवाल उठ रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि जनरल सुलेमानी अमेरिकी दूतावास और अन्य संपत्तियों पर निकट भविष्य में हमला करने वाले थे और इसलिए उन पर हमला करना जरूरी हो गया था। इस खुलासे के बाद सवाल उठता कि इस मिशन के जरिए ट्रम्प प्रशासन का लक्ष्य अमेरिकियों की रक्षा करना था या फिर IRGC के शीर्ष नेतृत्व को कमजोर करना था।
बता दें कि 3 जनवरी को अमेरिकी हमले में जनरल सुलेमानी के मारे जाने के बाद ईरान और अमेरिका में युद्ध जैसी परिस्थितियां बन गईं थीं। ईरान में सुलेमानी की एक हीरो की छवि थी और ईरान ने उनकी मौत का बदला लेने की बात कही थी। बुधवार को ईरान ने इराक में अमेरिका के दो सैन्य ठिकानों पर मिसाइलें दागीं और इसमें 80 अमेरिकी सैनिकों के मरने का दावा किया। वहीं अमेरिका ने इस दावे को खारिज किया।
ईरान के इस हमले के बाद से तनाव में थोड़ी कमी आई है। इस बीच ट्रम्प ने ईरान पर नए आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। वहीं ईरान ने अमेरिकी सेना को मध्य-पूर्व देशों से बाहर खदेड़ने की चेतावनी दी है।