वेस्टइंडीज के पूर्व महान बल्लेबाज एवर्टन का निधन, जानिए कैसे रहा सफर
वेस्टइंडीज के पूर्व बल्लेबाज और महान Three Ws का हिस्सा रहने वाले सर एवर्टन वीकेस का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। सर क्लाइड वॉलकाट और सर फ्रैंक वोरेल के साथ मिलकर उन्होंने वेस्टइंडीज टीम में मजबूत बल्लेबाजी तिकड़ी बनाई थी। 2019 में उन्हें हार्ट अटैक झेलना पड़ा था और तब से ही वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सके थे। क्रिकेट में उनके योगदान और उनके निजी जीवन पर एक नजर।
बेहद गरीब परिवार में जन्में थे वीकेस
वीकेस का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था और उनका परिवार लकड़ी के बने मकान में रहता था। उनके पिता ने परिवार के लिए पैसे जुटाने के लिए एक दशक से ज़्यादा समय ट्रिनिडाड में बिता दिया था। 14 साल की उम्र में एवर्टन ने स्कूल छोड़ दिया और उन्हें लोकल क्लब पिकविक के लिए नहीं खेलने दिया गया क्योंकि वह क्लब केवल गोरे लोगों को ही खेलने की अनुमति देता था।
ग्राउंड स्टाफ और सब्सीच्यूट फील्डर के रूप में किया काम
भले ही उन्हें खेलने का मौका नहीं मिल रहा था, लेकिन खेल के प्रति उनका लगाव इतना ज़्यादा कि लोग जल्दी ही उन्हें नोटिस करने लगे। वह फुटबॉल में इतने अच्छे थे कि उन्होंने बारबाडोस को रिप्रजेंट किया, लेकिन क्रिकेट उनका प्यार था। केनसिंगटन ओवल में सब्सीच्यूट फील्डर और ग्राउंड स्टाफ के रूप में काम करते हुए उन्होंने विश्व के बेहतरीन क्रिकेटर्स को करीब से देखा। बारबाडोस डिफेंस फोर्स ज्वाइन करने के बाद उन्हें क्लब क्रिकेट खेलना का मौका मिला।
टेस्ट में लगातार सबसे ज़्यादा शतक लगाने वाले बल्लेबाज हैं वीकेस
19 साल की उम्र में फर्स्ट-क्लास और 22 साल की उम्र में टेस्ट डेब्यू करने वाले वीकेस ने अपने चौथे टेस्ट में पहला शतक लगाया। इसके बाद उन्होंने लगातार पांच शतक लगाए और टेस्ट क्रिकेट में लगातार सबसे ज़्यादा शतक लगाने का रिकॉर्ड बना दिया। अगली टेस्ट पारी में यदि वह 90 पर आउट नहीं होते तो उन्होंने फर्स्ट-क्लास में लगातार सबसे ज़्यादा शतक के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली होती।
ऐसा रहा है वीकेस का इंटरनेशनल करियर
48 टेस्ट मैचों के करियर में वीकेस ने 58.61 की औसत के साथ 4,455 रन बनाए हैं। उन्होंने टेस्ट में 15 शतक और 19 अर्धशतक लगाए हैं। फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में उन्होंने 12,000 से ज़्यादा रन बनाए हैं।
संन्यास लेने के बाद भी क्रिकेट से जुड़े रहे वीकेस
जांघ में लगी गंभीर चोट ने उन्हें मात्र 33 साल की उम्र में क्रिकेट से संन्यास लेने पर मजबूर कर दिया। संन्यास लेने के बाद वह 1979 विश्वकप में खेलने वाली कनाडा की टीम के कोच रहे थे और फिर 1994 से वह ICC मैच रेफरी बन गए। 1995 में उन्हें नाइटहुड से सम्मानित किया गया तो वहीं सालों तक वह बारबाडोस क्रिकेट एसोसिएशन के एक्सीक्यूटिव पद पर काबिज रहे।