#SportsHeroesOfIndia: जानिए उस इकलौते भारतीय धावक की कहानी, जिसने मिल्खा सिंह को हराया
क्या है खबर?
1 जुलाई, 1937 को पंजाब के होशियारपुर जिले में एक ऐसे महान व्यक्ति का जन्म हुआ था जिसने दौड़ में खूब सफलता हासिल की थी।
माखन सिंह नाम के पूर्व भारतीय धावक ने नेशनल गेम्स में 13 स्वर्ण और तीन रजत पदक जीते थे। वह मिल्खा सिंह को हराने वाले इकलौते भारतीय धावक थे।
लेकिन आश्चर्यजनक बात है कि 2002 में दुनिया को अलविदा कह देने वाले माखन के बारे में शायद ही लोगों को पता होगा।
पदक
1959 में जीता पहला पदक
माखन सिंह बेहतरीन धावक थे और उन्होंने इस बात का प्रमाण 1959 में कटक में हुए नेशनल गेम्स के दौरान दिया।
उन्होंने कटक में कांस्य पदक जीता था जो उनके करियर का पहला पदक भी था। इसके बाद उन्होंने लगातार पदक जीतना अपनी आदत में शुमार कर लिया।
इसके बाद 1960 में मद्रास (चेन्नई) में हुए नेशनल गेम्स में उन्होंने एक स्वर्ण और रजत पदक जीता। 1963 में त्रिवेंद्रम (तिरुवनन्तपुरम) में उन्होंने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीते थे।
कोलकाता
कलकत्ता में किया सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
1962 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुए नेशनल गेम्स, माखन सिंह के करियर के बेस्ट गेम्स साबित हुए। उस दौरान मिल्खा सिंह भी अपने चरम पर थे।
दोनों के बीच कौन आगे आता है, इस चीज को देखने के लिए लोगों में खासा उत्साह था और शायद माखन सिंह भी इस प्रतियोगिता के लिए तैयार होकर आए थे।
माखन ने मिल्खा सिंह को हराकर सनसनी फैला दी और इसके अलावा उन नेशनल गेम्स में कुल चार स्वर्ण पदक भी जीते थे।
जानकारी
एशियन गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता
1962 में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में माखन सिंह ने 4x400 रिले में स्वर्ण पदक जीता था और इसके अलावा उन्होंने 400 मीटर में रजत पदक अपने नाम किया था।
जीवन
दौड़ में झोंका सबकुछ लेकिन जिंदगी नहीं संवरी
1959 से लेकर 1964 तक माखन सिंह ने सभी गेम्स में भाग लिया था और कुल 12 स्वर्ण, तीन रजत और एक कांस्य पदक जीता था।
अपनी दौड़ से इतना बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले माखन के बारे में लोगों को ज़्यादा नहीं पता होगा और इस खेल ने भी उनकी जिंदगी की मुश्किलें कम नहीं की।
उनका परिवार आर्थिक तंगी में रहा और पैसों की कमी के कारण उन्हें ट्रक चलाकर परिवार का पालन पोषण करना पड़ा।
दुर्घटना
ट्रक चलाने के दौरान हुए हादसे का शिकार
आर्थिक तंगी के चलते माखन ने ट्रक चलाकर अपने परिवार को पालने की कोशिश की, लेकिन इसी दौरान हुई एक दुर्घटना में उन्हें अपना एक पैर गंवाना पड़ा।
एक पैर गंवाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने गांव में किराने की दुकान खोली, लेकिन एक पैर से वह सबकुछ करने में सफल नहीं हो पा रहे थे।
आर्थिक तंगी के चलते इलाज़ न करा पाने के कारण 21 जनवरी, 2002 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
मेहनत
नहीं मिला मेहनत का फल
मिल्खा सिंह को सबकुछ मिला है, पैसा, पहचान और लेजेंड का तमगा। लोग उन्हें जानते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं।
लेकिन, वह धावक जिसने मिल्खा सिंह को भी हराया था, उनको शायद ही कोई जानता होगा। उनके ऊपर न तो कोई फिल्म बनी और न ही उन्हें पैसे ही मिले।
उन्होंने देश के लिए जो किया उन्हें उसका फल बिल्कुल भी नहीं मिला और उनके जाने के बाद भी उनका परिवार तंगी में जी रहा है।
परिवार
अवार्ड बेचने को मजबूर हुआ परिवार
रेस ट्रैक पर अपनी उपलब्धियों के लिए माखन सिंह को भारत सरकार ने 'अर्जुन अवार्ड' से नवाजा था। लेकिन सिर्फ अवार्ड हासिल करने से जिंदगी नहीं गुजरती और यह बात माखन का परिवार अच्छे से समझता है।
जब खाने के लाले पड़ने लगे तो उनका परिवार अवार्ड और मेडल्स को बेचने पर मजबूर हो गया। माखन की पत्नी के मुताबिक उनके पति तो दुनिया छोड़ चुके हैं और अवार्ड बेचकर उनका परिवार खाने की व्यवस्था करने को मजबूर है।