क्या है ISRO का स्पेस डॉकिंग मिशन, जिसे जल्द किया जाएगा लॉन्च?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने यूरोप के प्रोबा-3 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद अब अपने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडएक्स) मिशन की तैयारी शुरू कर दी है। ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि PSLV-C60 इस मिशन को लॉन्च करेगा, जिसमें स्पेस डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि रॉकेट तैयार है और मिशन के परीक्षण व अंतिम गतिविधियां जारी हैं। यह मिशन भारत की अंतरिक्ष तकनीक में एक और बड़ी उपलब्धि को दर्शाएगा।
क्या है ISRO का स्पेस डॉकिंग मिशन?
ISRO के स्पेस डॉकिंग मिशन का उद्देश्य पृथ्वी की कक्षा में 2 सैटेलाइट्स को डॉक करना है, यानी एक सैटेलाइट को दूसरे से जुड़ने में सक्षम बनाना। यह बहुत ही मुश्किल काम है, जिसे कुछ ही देशों ने किया है। इस मिशन में 2 सैटेलाइट (चेजर और टारगेट) होंगे, जिनका वजन 400 किलोग्राम है। इन्हें PSLV रॉकेट से 700 किलोमीटर ऊंचाई पर भेजा जाएगा। इस तरह की तकनीक में केवल अमेरिका, चीन और रूस ने ही सफलता हासिल की है।
स्पेस डॉकिंग मिशन का महत्व
यह मिशन भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक अहम कदम है, क्योंकि यह मानवयुक्त मिशनों और अंतरिक्ष में लॉजिस्टिक क्षमताओं को मजबूत करने में मदद करेगा। स्पेस डॉकिंग तकनीक अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) के संचालन और अन्य कार्यों में उपयोगी होती है। भारत का यह मिशन भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन बनाने और गहरे अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। यह ISRO की बढ़ती ताकत और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में योगदान करेगा।
इसमें शामिल होंगे कई वैज्ञानिक उपकरण
स्पेडएक्स मिशन में कई वैज्ञानिक उपकरण भी होंगे, जो इसके उद्देश्यों को और बेहतर बनाएंगे। अंतरिक्ष डॉकिंग के क्षेत्र में सफलता ग्रहों की खोज, खगोलीय पिंडों से नमूना संग्रह और अंतरिक्ष आवासों के रखरखाव के लिए महत्वपूर्ण है। ISRO के केवी श्रीराम के अनुसार, सैटेलाइट अपने आप से डॉकिंग करने के लिए कई तरह के अभ्यास करेगा। यह परीक्षण गगनयान मिशन जैसे भविष्य के कई अन्य मिशनों में काफी मदद करेगा।
क्या हैं इस इस मिशन में चुनौतियां?
ISRO के स्पेस डॉकिंग मिशन में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती 2 सैटेलाइट्स को पृथ्वी की कक्षा में मिलीमीटर-स्तर की सटीकता के साथ जोड़ना है। इसके अलावा, दोनों सैटेलाइट्स के बीच संचार और नेविगेशन डाटा का आदान-प्रदान ठीक तरह से होते रहना चाहिए। ऑटोमैटिक डॉकिंग के लिए उन्नत सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की भी आवश्यकता होगी, ताकि दोनों अंतरिक्ष यान सही तरीके से जुड़ सकें और मिशन को सफल बनाया जा सके।