डोडो आएंगे वापस, 350 साल से विलुप्त पक्षी को विज्ञान से दोबारा जीवन देने का प्रयास
दुनिया में कई ऐसे जानवर-पक्षी हैं, जिनके नाम से तो लोग परिचित हैं, लेकिन वो सालों पहले विलुप्त हो चुके हैं। डायनासोर, वुली मैमथ और डोडो जैसे जीव जलवायु में परिवर्तन और इंसानों के शिकार होते गए और विलुप्त हो गए। अब वैज्ञानिक विलुप्त हो चुके पक्षी डोडो को फिर से जिंदा करने की कोशिश में लगे हुए हैं। डोडो को विलुप्त हुए लगभग 350 वर्ष से अधिक हो चुके हैं।
आखिरी बार 1662 में देखा गया था डोडो
डोडो ऐसा पक्षी था, जो उड़ नहीं सकता था और दिखने में बतख जैसा था। आखिरी बार डोडो को 1662 में देखा गया था, हालांकि कुछ जगहों पर रिकॉर्ड के हवाले से यह भी कहा गया कि आखिरी डोडो पक्षी 1681 में मॉरीशस में शिकार किया गया था। अब जीन तकनीक पर काम करने वाली कोलोसल बायोसाइंसेज नाम की कंपनी ने कहा है कि वह डोडो पक्षी को फिर से जिंदा करने की योजना पर काम कर रही है।
मॉरीशस का ज्वालामुखी द्वीप था डोडो का घर
डोडो को जिंदा करने वाले प्रोजेक्ट से जुड़े कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इकोलॉजी एंड इवोल्यूशनरी बॉयोलॉजी के प्रोफेसर बेथ शापिरो ने CNN को बताया, "हम (प्रजातियों के) विलुप्त होने के संकट के बीच में हैं। हमारा उत्तरदायित्व है कि हम लोगों को विलुप्त होने के संकट के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करें।" शोधकर्ताओं का मानना है कि सुरक्षा और भरपूर संसाधनों के कारण मॉरीशस का ज्वालामुखी द्वीप डोडो पक्षी का एकमात्र घर था।
मनुष्यों और अन्य जानवरों ने किया डोडो का शिकार
कहा जाता है कि ज्वालामुखी द्वीप पर डोडो के रहने के लिए इतनी अच्छी स्थिति थी कि डोडो उड़ना भूल गया। हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व में स्थित मॉरीशस द्वीप पर 17वीं शताब्दी के मध्य में मनुष्यों के आने के बाद पर्यावरण पर अतिक्रमण हुआ और धीरे-धीरे डोडो विलुप्त हो गये। इसके अलावा बंदर, बिल्ली, सुअर और चूहों ने भी डोडो का शिकार किया और समुद्र का बढ़ता स्तर भी उनके विलुप्त होने का कारण रहा।
तनाव मुक्त वातावरण में रहता था डोडो
शोधकर्ताओं का मानना है कि तनाव मुक्त वातावरण के कारण ये पक्षी साल में सिर्फ एक अंडा देकर प्रजनन करता था। वैज्ञानिकों को विलुप्त हो चुके डोडो की हड्डी की संरचना से पता चला है कि अगस्त या उसके आसपास ये 8 इंच की औसत ऊंचाई पर चूजों को जन्म देते थे और इनके चूजे बहुत तेजी से बढ़ते थे। ये पक्षी फल, बीज, शंख और केकड़ों का भोजन करता था।
डलास कंपनी ने इकट्ठा किया 22.5 करोड़ डॉलर का फंड
2021 में लॉन्च की गई डलास कंपनी ने मंगलवार को बताया कि उसे 15 करोड़ डॉलर का निवेश चाहिए था। कंपनी ने अब तक 22.5 करोड़ डॉलर इकट्ठा किए हैं। इनमें यूनाइटेड स्टेट्स इनोवेटिव टेक्नोलॉजी फंड, ब्रेयर कैपिटल और CIA की वेंचर कैपिटल फर्म In-Q-Tel शामिल हैं। ये कंपनी जीनोम के कई हिस्सों को एक साथ बदलने के लिए उपकरणों का परीक्षण कर रही है और कृतिम गर्भ से जुड़ी तकनीकों पर काम कर रही है।
ऐसे जीवित किया जाएगा डोडो
डोडो और उसके सबसे नजदीकी रिश्तेदार निकोबारी कबूतर के DNA का अध्ययन कर यह समझने का प्रयास हो रहा है कि कौन से अनुवांशिक गुण डोडो को डोडो बनाते हैं। बाद में निकोबारी कबूतर के जीन्स में बदलाव कर उन्हें डोडो बनाने का प्रयास होगा। इन जीन्स को कबूतरों और मुर्गी जैसे अन्य पक्षियों के अंडों में डालने का प्रयास होगा। इससे पैदा होने वाले पक्षी में कुदरती तौर पर डोडो के अंडे देने की संभावना हो सकती है।
17वीं सदी के बाद से वातावरण में हो चुका है बड़ा बदलाव
हालांकि, डोडो को जीवित करने की प्रक्रिया और अवधारणा अभी प्रारंभिक और सैद्धांतिक चरण में है। वैज्ञानिक शापिरो का कहना है, "प्रजातियों को संरक्षित करना केवल उनके अस्तित्व के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि ये धरती के अच्छे के लिए भी है।" शापिरो का यह भी मानना है कि 17वीं सदी के बाद से पर्यावरण में नाटकीय बदलाव हो चुके हैं, इसलिए "जो विलुप्त हो चुका है, सौ फीसदी वैसा ही" जीव पैदा करना संभव नहीं होगा।
विलुप्त जीवों को धरती पर लाने के विचार से असहमत लोग
विलुप्त जीवों को दोबारा धरती पर लाने के विचार से कुछ वैज्ञानिक असहमत भी हैं। उनका मानना है कि इस प्रक्रिया में लगने वाली ऊर्जा और धन धरती पर मौजूद जीवों की कीमत पर खर्च हो रहा है। ड्यूक यूनिवर्सिटी के इकोलॉजिस्ट स्टुअर्ट पिम ने कहा, "वूली स्तनधारी (हाथियों का विलुप्त समूह) को आप धरती पर कहां रखेंगे? पिंजरे में न?" उन्होंने कि जिस इकोसिस्टम में स्तनधारी होते थे, वह वातावरण भी काफी पहले ही खत्म हो चुका है।
विलुप्त होने की कगार पर खड़े जीवों को बचाने में लगे धन और ऊर्जा
कनाडा के हेलफैक्स की डलहौजी यूनिवर्सिटी में बायोलॉजिस्ट बोरिस वर्म कहते हैं, " विलुप्त हो चुके जीवों को पुनर्जीवित करने की तुलना में वर्तमान में विलुप्त होने की कगार पर खड़े जीवों को बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए। इनको बचाने में कम ऊर्जा और धन खर्च होगा।" कुछ वैज्ञानिकों और लोगों का मानना है कि जो जीव-जंतु और पशु-पक्षी जैसे होते हैं, वे जीन्स और वातावरण दोनों की वजह से होते हैं, इसलिए उनसे छेड़छाड़ न किया जाए तो बेहतर है।
ऐसे पड़ा 'डोडो' नाम
पुर्तगाल और डेनमार्क के शिकारियों पर इस पक्षी के शिकार का आरोप लगा था। कहा जाता है कि डोडो शिकारियों से बिल्कुल नहीं डरते थे और उनके पास आ जाया करते थे। डोडो को उनका यह नाम पुर्तगाली भाषा के मूर्ख शब्द से मिला है। शायद शिकारियों के पास खुद चल कर आ जाने की उनकी आदत के कारण ही पुर्तगालियों ने उनका डोडो (मूर्ख) नाम दिया था।