नासा ने हासिल की यह बड़ी सफलता, अब चांद पर रास्ता नहीं भटकेंगे अंतरिक्ष यात्री
क्या है खबर?
नासा ने पहली बार चंद्रमा पर GPS सिग्नल को सफलतापूर्वक ट्रैक किया।
यह उपलब्धि लूनर GNSS रिसीवर एक्सपेरीमेंट (LuGRE) की मदद से हासिल हुई, जिसे 3 मार्च को चंद्रमा पर सिग्नल प्राप्त करने में सफलता मिली।
यह तकनीक पृथ्वी के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) का उपयोग करती है, जिससे चंद्रमा पर भी नेविगेशन संभव हो सकेगा। इस मिशन में नासा के साथ इटली की अंतरिक्ष एजेंसी भी शामिल रही।
उपयोग
कैसे हुआ चंद्रमा पर GPS का सफल उपयोग?
नासा ने इस मिशन को फायरफ्लाई एयरोस्पेस के ब्लू घोस्ट चंद्र लैंडर के जरिए अंजाम दिया।
ब्लू घोस्ट 2 मार्च को चंद्रमा की सतह पर उतरा और LuGRE इसके साथ भेजे गए पेलोड में से एक था। इसके उतरते ही नासा के वैज्ञानिकों ने इसे सक्रिय किया और इसका पहला प्रयोग सफल रहा।
LuGRE ने चंद्रमा से 2.25 लाख मील दूर पृथ्वी के GNSS सिग्नलों को पकड़कर अपनी स्थिति और समय निर्धारित किया। यह प्रयोग 14 दिनों तक जारी रहेगा।
लाभ
GPS तकनीक से अंतरिक्ष मिशनों को क्या लाभ होगा?
GPS तकनीक चंद्रमा और उससे आगे के मिशनों में नेविगेशन को अधिक सटीक और आसान बनाएगी।
अब तक अंतरिक्ष यान अपनी दिशा और स्थिति का अनुमान अलग-अलग तरीकों से लगाते थे, लेकिन GPS से यह काम सटीक हो सकेगा।
आर्टेमिस मिशन सहित भविष्य के चंद्र अभियानों में इस तकनीक से वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष यात्रियों को फायदा होगा। यह सिस्टम चंद्रमा और पृथ्वी के बीच के सिस्लुनर स्पेस में भी काम करेगा, जिससे गहरे अंतरिक्ष में उपयोगी साबित हो सकता है।
भविष्य
GNSS सिग्नल और इसका भविष्य
GNSS सिग्नल रेडियो तरंगों के माध्यम से नेविगेशन डाटा भेजते हैं। पृथ्वी पर GPS, गैलीलियो, बेईडू और ग्लोनास जैसे GNSS सिस्टम उपयोग किए जाते हैं।
अब नासा इस तकनीक का विस्तार चंद्रमा तक कर रही है, जिससे भविष्य में मंगल और अन्य ग्रहों तक इसका उपयोग संभव हो सकता है।
21 जनवरी को LuGRE ने अब तक की सबसे ऊंचाई पर GNSS सिग्नल प्राप्त करने का रिकॉर्ड बनाया था। अब यह परीक्षण चंद्रमा पर जारी रहेगा, जिससे नई संभावनाएं खुलेंगी।