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    कोरोना वायरस: कैसे विकसित, पैक और ट्रांसपोर्ट की जाती हैं वैक्सीन?

    कोरोना वायरस: कैसे विकसित, पैक और ट्रांसपोर्ट की जाती हैं वैक्सीन?

    लेखन मुकुल तोमर
    Dec 29, 2020
    05:29 pm

    क्या है खबर?

    महीनों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार कोरोना वायरस की वैक्सीनें आने लगी हैं और अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे देशों में इनका वितरण भी शुरु हो गया है।

    महामारी के बीच लोगों के लिए ये इंतजार भले ही लंबा साबित हुआ हो, लेकिन वैक्सीन का निर्माण एक बेहद जटिल प्रक्रिया है और पहली बार किसी बीमारी की वैक्सीन एक साल के अंदर आई है।

    चलिए फिर वैक्सीन से संबंधित इसी जटिल प्रक्रिया के बारे में जानते हैं।

    निर्माण

    किन चीजों से बनाई जाती हैं वैक्सीन?

    वैक्सीन बनाने के लिए अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। निष्क्रिय या जीवित वायरस के जरिए वैक्सीन बनाना एक परंपरागत तरीका है, वहीं विज्ञान के तरक्की के साथ अन्य कई तरीके भी आए हैं।

    इसमें अन्य वायरसों को जेनेटिक बदलाव करके वैक्सीन बनाना और कृत्रिम RNA (mRNA) के जरिए वैक्सीन बनाना सबसे अहम हैं।

    इसके अलावा वैक्सीनों में अन्य सामग्रियां भी होती हैं जिनसे इन्हें सुरक्षित, प्रभावी और स्थिर बनाने और संरक्षित करने में मदद मिलती है।

    अगला चरण

    वैक्सीन के निर्माण के बाद क्या होता है?

    निर्माण के बाद हर वैक्सीन का व्यापक और कठोर टेस्टिंग और निरीक्षण होता है। इस प्रक्रिया में इनका सबसे पहले लैब और फिर जानवरों पर परीक्षण किया जाता है और इसे प्री-क्लिनिकल ट्रायल कहा जाता है।

    इस चरण में देखा जाता है कि वैक्सीन इम्युन रिस्पॉन्स पैदा कर रही है या नहीं और क्या ये इंसानों पर ट्रायल के लिए सुरक्षित है। अगर ये इन दोनों पैमानों पर खरा उतरती है तो फिर इसका इंसानों पर ट्रायल किया जाता है।

    इंसानी ट्रायल

    इंसानी ट्रायल में क्या होता है?

    किसी भी वैक्सीन का इंसानों पर तीन चरणों में ट्रायल होता है और इसे क्लिनिकल ट्रायल कहा जाता है।

    पहले चरण में बहुत कम लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया जाता है और इसमें देखा जाता है कि ये कितनी सुरक्षित है और इम्युन रिस्पॉन्स पैदा हो रहा है या नहीं।

    दूसरे चरण में थोड़े अधिक लोगों पर ट्रायल किया जाता है और इसमें पहले चरण के नतीजों को और अधिक पुख्ता किया जाता है।

    तीसरा ट्रायल

    सबसे अहम होता है तीसरे चरण का इंसानी ट्रायल

    इंसानी ट्रायल का तीसरा चरण सबसे अहम होता है और इसमें हजारों लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है। इसी चरण में पता चलता है कि वैक्सीन संक्रमण रोकने में कितनी प्रभावी है और इसमें कोई दिक्कत तो नहीं है।

    आमतौर पर तीसरे चरण का ट्रायल सालों चलता है, लेकिन कोरोना वैक्सीन के संबंध में इन्हें एक साल के अंदर ही पूरा कर लिया गया।

    तीसरे चरण के बाद ही नियामक मंजूरी मिलती है और वितरण शुरू होता है।

    पैकिंग और शिपिंग

    कैसे पैक और ट्रांसपोर्ट की जाती हैं वैक्सीन?

    बड़ी मात्रा में निर्माण के बाद वैक्सीन की खुराकों को कांच की शीशियों में स्टोर करके अच्छी तरह से पैक किया जाता है। पैकिंग इस तरीके से की जाती है कि कठोर तापमान और यातायात का इस पर कोई असर न पड़े।

    इसके बाद स्पेशल कंटेनरों में इन्हें गंतव्य देश तक पहुंचाया जाता है, जहां इन्हें फ्रीजरों के जरिए एयरपोर्ट से कोल्ड स्टोरेज तक पहुंचाया जाता है। अंत में आइस-बॉक्सेज में इन्हें वितरण केंद्र तक पहुंचाया जाता है।

    जानकारी

    शिपिंग और स्टोरेज के लिए बनाई जाती है कोल्ड चैन

    शिपिंग के दौरान तापमान का बहुत ध्यान रखा जाता है और इसके लिए कोल्ड चैन बनाई जाती है। ज्यादातर वैक्सीनों को 2-8 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर किया जाता है और इससे अधिक या कम तापमान होने पर वैक्सीनें कम प्रभावी या असुरक्षित हो सकती हैं।

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