
फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी: कैमरे के पास चेहरा पढ़ने की ताकत; क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
क्या है खबर?
इंटरनेट और इससे जुड़ी टेक्नोलॉजी कुछ साल में तेजी से बदली है और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) भी मौजूदा प्रोडक्ट्स का हिस्सा बनी है।
AI, यानी कि डिवाइसेज के पास सोचने-समझने की क्षमता उन्हें कुछ अतिरिक्त फीचर्स दे देती है।
कैमरे के साथ AI को मिलाकर खास 'फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी' (FRT) तैयार की गई है, जो इंसानी चेहरे और उनके हाव-भाव पहचान सकती है। हालांकि, इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
आइए जानें कैसे।
टेक
क्या है फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी?
फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी या FRT की मदद से किसी भी कैमरा को खास क्षमताएं दी जा सकती हैं।
कैमरा इसके फ्रेम में आने वाले सब्जेक्ट के चेहरे पहचानने से लेकर उनके हाव-भाव तक समझ सकता है।
कैमरा इस टेक्नोलॉजी की मदद से एक चेहरे से दूसरे चेहरे के बीच अंतर भी समझ जाता है।
इसका इस्तेमाल CCTV से लेकर स्मार्टफोन कैमरा तक में किया जा सकता है और इसके कई फायदे हैं।
तरीका
कैसे काम करती है फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी?
फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी किसी चेहरे की पहचान करने या फिर उसके हाव-भाव समझने के लिए कंप्यूटर एल्गोरिदम्स का इस्तेमाल करती है।
उदाहरण के लिए, आंखों या ठुड्डी के आकार और नाक और होंठ के बीच की दूरी जैसे पैमाने इसमें मदद करते हैं।
यह टेक्नोलॉजी पहले से सेव डाटा का एनालिसिस कर किसी चेहरे से मिलान कर सकती है।
फेस डिटेक्शन और एनालिसिस के बाद आखिरी चरण के तौर पर डाटा का मिलान किया जाता है।
फायदे
फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी के फायदे क्या हैं?
बायोमेट्रिक लॉगिन या सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसा स्मार्टफोन्स फेस अनलॉक में पहले ही इसका कर रहे हैं।
FRT की मदद से किसी खोए हुए शख्स या अपराधी का पता लगाया जा सकता है।
फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी पर आने वाला खर्च कम होता है और बिजनेस इसे कर्मचारियों की अटेंडेंस लगाने वाले सिस्टम में इस्तेमाल कर सकते हैं।
कोविड महामारी जैसे दौर में बिना छुए लॉगिन का विकल्प इसके जरिए मिल जाता है।
चुनौतियां
फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी से जुड़ी चुनौतियां क्या हैं?
सबसे पहला सवाल प्राइवेसी से जुड़ा है क्योंकि एक्सपर्ट्स चेहरे से जुड़े डाटा के इस्तेमाल को लेकर एक मत नहीं हैं।
इस टेक्नोलॉजी की सीमाएं भी बड़ी चुनौती बनकर सामने आई हैं।
खास तौर से कैमरा क्वॉलिटी और भीड़ में ढेर सारे चेहरे एकसाथ होने पर इसपर असर पड़ सकता है।
वहीं, फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी पूरी तरह कारगर या फुल-प्रूफ नहीं है और इससे गलतियां होने की गुंजाइश भी बनी रहती है।
सवाल
क्या सरकारी एजेंसियों को करना चाहिए इसका इस्तेमाल?
साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश पुलिस ने FRT का इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए किया।
यह सिस्टम महिला के चेहरे पर आने वाले डर, गुस्से या घबराहट के हाव-भाव को समझकर और उसकी फोटो लेने के बाद पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे देता।
हालांकि, यह सिस्टम कारगर नहीं रहा और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत की गई शुरुआत रोकनी पड़ी।
सिस्टम की ओर से ढेरों गलतियां हो रही थीं, जिसने पुलिस का काम बढ़ा दिया।
वजह
आखिर फेल क्यों हुआ FRT सिस्टम?
साइबर सुरक्षा एक्सपर्ट राजशेखर राजहरिया ने हमें बताया कि भारत जैसे देश में भीड़ और कमजोर कैमरा क्वॉलिटी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
उन्होंने कहा, "FRT सिस्टम दुनिया के किसी भी हिस्से में पूरी तरह सफल नहीं रहा है। भारत में दोस्तों के बीच झगड़े या भाई-बहन के बीच बहस को भी यह सिस्टम दूसरे अपराध के मामलों से अलग नहीं कर सकता। ज्यादा आबादी के चलते चेहरों में अंतर कर पाना आसान नहीं होता और यह सिस्टम सफल नहीं है।"
जानकारी
फेसबुक ने बंद किया अपना फेस रिकॉग्निशन सिस्टम
सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने भी इस साल नवंबर में अपना फेस रिकॉग्निशन सिस्टम बंद करने का फैसला किया। यानी कि कई साल से यूजर्स की तस्वीरों से उनके चेहरे का डाटा जुटाने वाली कंपनी उनकी प्राइवेसी की फिक्र करते हुए ऐसा नहीं करेगी।
सुधार
क्या फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी में सुधार की गुंजाइश है?
इंटीग्रेशन विजार्ड्स सॉल्यूशन के CEO और AI एक्सपर्ट कुणाल किसलय कहते हैं, "कानूनी एजेंसियों के साथ FRT लोगों की जिंदगी पर असर डालेगी इसलिए इसका विश्वसनीय होना जरूरी है। अभी गलत गिरफ्तारी, प्राइवेसी और मानवाधिकार उल्लंघन जैसी दिक्कतें भी सामने हैं।"
उन्होंने कहा, "FRT टेक्नोलॉजी अभी नई है और जल्दबाजी के बजाय इसके इस्तेमाल की जरूरत और तरीका समझते हुए इसमें सुधार की जरूरत है।"
कुणाल मानते हैं कि FRT को डाटा एनालिसिस के जरिए बेहतर बनाया जा सकता है।
प्राइवेसी
क्या प्राइवेसी के लिए खतरा है फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी?
औंध विकास मंडल की प्रेसिडेंट और पॉश कमेटी मेंबर वैशाली पाटकर ने कहा कि FRT सिस्टम का इस्तेमाल वहीं ढंग से हो सकता है, जहां लोग कम हों।
प्राइवेसी पर उन्होंने कहा, "महिलाओं से जुड़े अपराध के मामलों में संवेदनशीलता और सावधानी की जरूरत होती है और सभी महिलाएं अपनी पहचान भी नहीं जाहिर करना चाहतीं। ऐसे में कैमरा में उनके चेहरे और किसी घटना के दौरान उनकी भावनाओं का रिकॉर्ड होना, जाहिर तौर पर निजता का हनन है।"
भविष्य
क्या होगा फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी का भविष्य?
कई देश FRT के इस्तेमाल से जुड़े नियम बना चुके हैं और इसमें लगातार सुधार भी किए जा रहे हैं। भारत सरकार भी ऐसे कदम उठाकर सरकारी संस्थानों में इस्तेमाल शुरू कर सकती है।
कानून के दायरे में इसका सुरक्षित इस्तेमाल अपराधियों को पकड़ने और खोए हुए लोगों को अपनों से मिलाने जैसे काम कर सकता है।
इस टेक्नोलॉजी के उपयोग में जल्दबाजी के बजाय जरूरत और फंक्शन के हिसाब से टेस्टिंग के बाद इसे लागू करना ही बेहतर होगा।