दुनिया की सबसे छोटी हार्ड ड्राइव बन सकता है DNA, चल रही है स्टडी
डाटा का इस्तेमाल दुनियाभर में पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ चुका है और साल 2020 से 2025 के बीच इसके छह गुना तक बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। पिछले साल दुनियाभर में 33 जेटाबाइट्स डाटा तैयार हुआ और साल 2025 तक इसके 175 जेटाबाइट्स तक पहुंचने की उम्मीद है। बता दें, एक जेटाबाइट एक लाख करोड़ गीगाबाइट्स के बराबर होता है। ढेर सारे डाटा को स्टोर करने के लिए मौजूदा स्टोरेज व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है।
इंसानी DNA जैसी हार्ड ड्राइव होगी तैयार
ढेर सारा डाटा स्टोर करने के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत भी होगी और इससे जुड़े समाधान खोजे जा रहे हैं। सुनने में बेशक अजीब लगे, लेकिन इंसानी शरीर में इस परेशानी का एक हल छुपा है। साल 1950 के बाद से ही वैज्ञानिक DNA को डाटा स्टोर करने के लिए इस्तेमाल करने से जुड़ी संभावनाओं पर चर्चा करते रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो इंसानी DNA दुनिया की सबसे छोटी हार्ड ड्राइव बनाई जा सकेगी।
DNA में सेव होता है ढेर सारा डाटा
DNA को इंसानी शरीर के ऐसे सूक्ष्म हिस्से के तौर पर समझा जा सकता है, जिसमें हर जीव की संरचना से लेकर उसके व्यवहार तक से जुड़ा डाटा सुरक्षित होता है।
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, अमेरिका के सेंटर फॉर सिंथेंटिक बायोलॉजी में केमिकल एंड बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग के असोसिएट प्रोसेसर डॉ कीथ ईजे त्यो ने टेक्नोलॉजी नेटवर्क्स से कहा, "यह बहुत ज्यादा जानकारी है और हमारे पास इसकी एक कॉपी शरीर में मौजूद हर कोशिका में मौजूद रहती है।"
DNA में भी हार्ड ड्राइव जैसी व्यवस्था
कंप्यूटर्स जानकारी को बाइनरी डिजिट्स या बिट्स (0 और 1) में स्टोर करते हैं। इन बिट्स की मदद से प्रोग्राम्स को चलने के लिए निर्देश दिए जाते हैं। इसी तरह, DNA में चार न्यूक्लिक एसिड बेसेज- A, T, G और C होते हैं, जो साथ मिलकर जीन्स का निर्माण करते हैं। रिसर्चर्स का कहना है कि DNA-आधारित डाटा स्टोरेज बाइनरी डाटा को इनकोड और डिकोड करने के लिए सिंथेसाइज्ड स्ट्रैंड्स इस्तेमाल कर सकेंगे। हालांकि, इससे जुड़ी कुछ सीमाएं भी होंगी।
मिल गया डाटा स्टोर करने का तरीका
त्यो और उनकी टीम ने एक इन-वाइट्रो तरीका खोज निकाला है, जिससे DNA में जानकारी स्टोर की जा सकती है। यह तरीका तय वक्त के अंदर अनटेम्प्लेटेड रिकॉर्डिंग TdT फॉर इनवायरमेंटल सिग्नल्स या TURTLES के साथ करता है, जिसके बारे में जर्नल ऑफ द अमेरिकन केमिकल सोसाइटी में प्रकाशित की गई स्टडी में जानकारी दी गई है। स्टडी की को-फर्स्ट ऑथर नमिता भान ने कहा कि सामने आए नतीजे सकारात्मक और उत्साहित करने वाले हैं।
तकनीकी चुनौतियों से निपटना अभी बाकी
स्टडी में सामने आया है कि रिसर्चर्स एक बाइट का 3/8वां हिस्सा करीब एक घंटे में रिपोर्ट करने में सफल रहे और इसे स्केल किया जा सकता है। त्यो ने कहा, "एक डिजिटल पिक्चर लाखों बाइट्स से बनी होती है और स्टैंडर्ड हार्ड ड्राइव पर इसे रीड या राइट करने में केवल सेकेंड का एक हिस्सा लगता है। ढेरों DNAs के साथ कहीं तेज डाटा स्टोरेज मिलेगा लेकिन इसके लिए कई तकनीकी दिक्कतों और चुनौतियों को दूर करना होगा।"
बेहतर स्टोरेज का कंप्यूटर्स की परफॉर्मेंस पर असर
डाटा रीड और राइट करने में लगने वाला समय कंप्यूटर की प्रोसेसिंग स्पीड से अलग होता है और नई टेक्नोलॉजी इससे जुड़े फायदे भी यूजर्स को देगी। अभी हार्ड डिस्क ड्राइव और सॉलिड स्टेट ड्राइव कंप्यूटर्स में इस्तेमाल की जाती हैं और इनके मुकाबले कंप्यूटर्स की परफॉर्मेंस बेहतर की जा सकती है। वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स की कोशिश कम से कम जगह और ऊर्जा इस्तेमाल करने वाला ऐसा स्टोरेज तैयार करने की है, जो मौजूदा टेक्नोलॉजी के मुकाबले तेज भी हो।