कोरोना वायरस: ठीक हुए लोगों के खून से किया जा सकता है मरीजों का इलाज- स्टडी
दुनियाभर में लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले चुके कोरोना वायरस (COVID-19) के इलाज के लिए नए तरीके खोजे जा रहे हैं। इसे लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों में रिसर्च चल रही हैं। ऐसी ही एक रिसर्च में पता चला है कि इस महामारी से ठीक हुए व्यक्ति के शरीर से एंटीबॉडीज निकालकर संक्रमित मरीज को चढ़ाने से इसका इलाज किया जा सकता है। इस तकनीक को कोन्वेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी (convalescent plasma therapy) कहा जा रहा है।
चीन में 10 लोगों पर किया गया सफल प्रयोग
कोरोना वायरस की वैक्सीन मिलने तक इस थैरेपी को इलाज का अच्छा विकल्प माना जा रहा है। चीन में गंभीर रूप से बीमार 10 लोगों पर इसका प्रयोग किया गया था। पहली डोज के बाद ही इन मरीजों की सेहत में सुधार होना शुरू हो गया। थैरेपी के बाद मरीजों का बुखार, खांसी, सांस लेने में परेशानी और छाती का दर्द ठीक हो गया और दो दिनों में उनकी सेहत में काफी सुधार देखा गया।
मरीजों की औसतन उम्र थी 52 साल
अमेरिकी जर्नल प्रोसिडिंग ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (PNAS) में इस थैरेपी के बारे में जानकारी दी गई है। जिन मरीजों पर यह प्रयोग किया था उनकी औसतन उम्र 52 साल थी।
यह थैरेपी काम कैसे करती है?
प्लाज्मा, खून का एक कंपोनेट होता है। जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से ठीक होता है तो उसके शरीर में यह महामारी फैलाने वाले वायरस के प्रति एंटीबॉडी बन जाती है। प्लाज्मा के जरिये वो एंटीबॉडीज निकालकर संक्रमित मरीज में चढ़ाई जाती है। इससे मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है और वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ सकती है। हालांकि, यह काफी पेचीदा प्रक्रिया होती है, लेकिन जिन मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया, उन्हें इससे तुरंत राहत मिली है।
अमेरिका में मिली क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी
स्टडी में पता चला कि प्लाज्मा चढ़ाए जाने के कारण मरीज के शरीर में लिम्फोसाइट बढ़ते हैं, लिवर और फेफड़ों की स्थिति में सुधार होता है और सूजन कम होती है। इस दौरान मरीज की सेहत पर कोई विपरित प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि, रिसर्चर ने अभी और प्रयोगों की जरूरत बताई है। अमेरिका में पिछले महीने इस थैरेपी के इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है। इसके बाद वहां के कई अस्पतालों ने इसके क्लीनिकल ट्रायल शुरू किए हैं।
संक्रमण को रोकने के लिए सालों से इस्तेमाल हो रहा प्लाज्मा
जानकारों का कहना है कि 1890 के दशक से संक्रमण को रोकने और इलाज करने के लिए प्लाज्मा का इस्तेमाल किया जा रहा है। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर टी जैकब जॉन ने कहा कि इससे इलाज की सफलता इस बात पर निर्भर करती है यह किसे और कब दिया जाता है। उन्होंने कहा कि यह उन मरीजों को हालत बिगड़ने से पहले दिया जाना चाहिए, जिन्हें पहले से डायबिटीज और हायपरटेंशन जैसी बीमारी हो।