पॉलिटिकल हफ्ता: क्यों साथ आना चाहते हैं प्रशांत किशोर और कांग्रेस और इसके क्या मायने?
क्या है खबर?
शनिवार को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेतृत्व के साथ महत्वपूर्ण बैठक की और इस बैठक में 2024 लोकसभा चुनाव के लिए एक रोडमैप पेश किया।
अटकलें हैं कि प्रशांत जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं और उनकी मुख्य जिम्मेदारी पार्टी को 2024 चुनाव के लिए तैयार करना होगा।
देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी और सबसे सफल चुनावी रणनीतिकार का साथ आना क्या मायने रखता है, आज 'पॉलिटिकल हफ्ता' में ये समझने की कोशिश करते हैं।
ट्रैक रिकॉर्ड
बेहद शानदार है प्रशांत किशोर का ट्रैक रिकॉर्ड
एक चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर का अभी तक का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद शानदार रहा है।
2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत में उनकी रणनीति की अहम भूमिका रही थी और 'चाय पर चर्चा' जैसे कार्यक्रम उनके दिमाग की उपज थे।
इसके बाद वे नीतीश कुमार, एमके स्टालिन, जगनमोहन रेड्डी और ममता बनर्जी जैसे नेताओं के साथ काम कर चुके हैं और हर बार उनके हाथ सफलता लगी।
असफलता
प्रशांत किशोर की एकमात्र असफलता कांग्रेस के साथ
चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर को अभी तक जो एकमात्र असफलता मिली है, वो कांग्रेस के साथ ही मिली है।
2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के प्रचार का जिम्मा संभाला था, लेकिन पार्टी ये चुनाव बुरी तरह हार गई।
प्रशांत का कहना है कि कांग्रेस उनके बताए सुझावों पर अमल नहीं कर सकी थी जिनमें से एक प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना भी था।
कारण
बुरे अनुभव के बावजूद कांग्रेस के साथ क्यों आना चाहते हैं प्रशांत?
कहा जाता है कि प्रशांत किशोर को चुनौतियां लेना पसंद है और इस समय भारतीय राजनीति में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को फिर से जिंदा करना है। प्रशांत इस चुनौती को लेना चाहते हैं और इसलिए पिछले कुछ समय में कई बार गांधी परिवार के साथ बैठक कर चुके हैं।
इसके अलावा प्रशांत का भाजपा के साथ भी छत्तीस का आंकड़ा है और 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से वह उसके विरोधियों के साथ ही काम कर रहे हैं।
कांग्रेस की दिलचस्पी
कांग्रेस की प्रशांत में क्यों दिलचस्पी?
कांग्रेस इस समय अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर में है और उसे समझ नहीं आ रहा कि अपने दिन बदलने के लिए वह क्या कर सकती है।
उसकी इस बुरी स्थिति ने उसे प्रशांत की ओर ढकेला है जो खुद कांग्रेस में दिलचस्पी दिखाते रहे हैं। प्रशांत के शानदार ट्रैक रिकॉर्ड ने भी कांग्रेस को उनकी ओर आकर्षित किया है।
कांग्रेस को उम्मीद है कि देश के सबसे सफल रणनीतिकार के साथ मिलकर वह अपने दिन बदल सकती है।
कांग्रेस
कांग्रेस क्यों अहम?
दो लोकसभा चुनाव और एक के बाद एक कई विधानसभा चुनावों में बेहद करारी हार के बावजूद कांग्रेस अभी भी देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है और लोकसभा चुनाव में उसे लगभग 20 प्रतिशत वोट मिलते हैं।
अभी वही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो सुधार करने पर हाल-फिलहाल में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को चुनौती दे सकती है। यही कारण है कि उसके रसातल में होने के बावजूद भाजपा लगातार उस पर हमले करती रहती है।
रणनीति
कांग्रेस के लिए प्रशांत की क्या रणनीति?
प्रशांत कांग्रेस की अहमियत को पहचानते हैं और उनके पास पार्टी को जिंदा करने का एक पूरा प्लान है, जिसमें आंतरिक चुनाव से लेकर सदस्यता अभियान तक शामिल हैं।
लोकसभा चुनाव के लिए उनकी रणनीति कांग्रेस को चयनित सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़वाने और बाकी सीटों पर सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़वाने की है।
उनका कहना है कि अगर कांग्रेस 50 सीट से 120 सीट तक भी पहुंच जाती है तो भाजपा सत्ता से हट जाएगी।
संभावनाएं
क्या सचमुच भाजपा को सत्ता से हटा सकते हैं कांग्रेस और प्रशांत?
अगर कांग्रेस अगले चुनाव में 120 सीट ले भी आती है तो भी वो बहुमत से बेहद पीछे होगी।
हालांकि प्रशांत का कहना है कि दक्षिण भारत में लगभग 200 सीटें हैं जिनमें से 50 पर भाजपा जीतती है और बाकी 150 सीटें अन्य पार्टियों के खाते में जाती हैं।
इनमें से अधिकतर पार्टियों के साथ प्रशांत काम कर चुके हैं और उन्हें कांग्रेस के साथ ला सकते हैं। वे सभी मिलकर 272 सीटों के बहुमत तक पहुंच सकते है।
चुनौती
प्रशांत के सामने क्या चुनौतियां?
चुनावी गणित और आंकड़ों से अलग प्रशांत के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के संगठन में सुधार करना है। कांग्रेस एक बेहद पुरानी पार्टी है और इसके काम करने का एक खास तरीका है।
प्रशांत कह चुके हैं कि अगर कांग्रेस को भाजपा को चुनौती देनी है तो उसे अपने तरीकों को बदलना होगा। वे एक बार अपने इस प्रयास में विफल हो चुके हैं, इस बार वे कितने सफल होते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा।