मणिपुर में चल रहा मौन चुनाव प्रचार; कोई रैली नहीं, बंद दरवाजों में हो रहीं बैठकें
लगभग एक साल से हिंसा से जूझ रहे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल बाकी राज्यों से काफी अलग है। यहां न तो रैलियां हो रही हैं और न ही बढ़-चढ़कर बयानबाजी हो रही है। राज्य में इस बार 'मौन चुनाव प्रचार' चल रहा है। यह चुनाव प्रचार भी बेहद सूक्ष्म स्तर पर कुछ दर्जन लोगों के समूह में किया जा रहा है। किसी बड़े केंद्रीय नेता के राज्य में प्रचार करने की संभावना भी कम है।
जनता खुले प्रचार के समर्थन में नहीं, सशस्त्र संगठन ने भी जारी किया फरमान
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल की हिंसा के बाद मणिपुर की जनता बिल्कुल भी खुले चुनाव प्रचार के समर्थन में नहीं है। सशस्त्र मैतेई कट्टरपंथी संगठन अरामबाई तेंगगोल ने इस संबंध में एक फरमान भी जारी किया है। इसमें चुनाव प्रचार, दावतों, बैठक में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल और झंडा फहराने आदि की मनाही की गई है। उसका कहना है कि ऐसा करना स्थिति को बिगाड़ सकता है और समुदाय के अंदर और विभाजन पैदा कर सकता है।
इस तरह प्रचार कर रहे उम्मीदवार
इस फरमान के बाद उम्मीदवार खुलकर प्रचार नहीं कर रहे, बल्कि सूक्ष्म स्तर पर मौन प्रचार कर रहे हैं। वोटरों तक पहुंचने के लिए वे स्थानीय नेताओं के घर या निजी कार्यालय पर बंद दरवाजों में 20 से 50 लोगों के समूह के साथ बैठक कर रहे हैं। इसके अलावा उम्मीदवार विभिन्न क्षेत्रों में संरक्षक देवियों की पूजा करके भी वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। कोई भी बड़ी रैली, जनसभा या पोस्टर देखने को नहीं मिल रहे।
प्रधानमंत्री समेत बड़े भाजपा नेता नहीं करेंगे राज्य में प्रचार
मणिपुर में सत्तारूढ़ भाजपा के बड़े नेताओं के राज्य में प्रचार करने नहीं आएंगे और पार्टी बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की मदद से घर-घर जाकर प्रचार कर रही है। राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, "आमतौर पर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री, सभी हजारों लोगों के साथ बड़ी रैलियां करते हैं... अगर राष्ट्रीय नेता प्रचार करने आते हैं तो लोगों को यह कहने का मौका मिलेगा कि वे हिंसा के समय नहीं आए, लेकिन वोटों के लिए आए हैं।"
मणिपुर में पिछले साल 3 मई से जारी है हिंसा
मणिपुर में पिछले साल 3 मई से हिंसा जारी है। तब आदिवासी समुदाय कुकी ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने के खिलाफ मार्च निकाला था, जिसके बाद हिंसा भड़क गई थी। मणिपुर हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हुई है, वहीं 1,100 से अधिक लोग घायल हुए हैं। मणिपुर में 53 प्रतिशत मैतेई है, जो घाटी में रहते हैं, वहीं कुकी समेत 40 प्रतिशत आदिवासी हैं, जो पहाडों पर रहते हैं।