इस साल कब है कृष्ण जन्माष्टमी? जानिए त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
क्या है खबर?
कृष्ण जन्माष्टमी प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है, जिसे मनाने का तरीका एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न हैं।
कहीं पर दही हांडी का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो कहीं पर कृष्ण जन्म से जुड़ी झाकियां निकाली जाती हैं।
बेशक इस त्योहार को मनाने का तरीका हर जगह पर अलग हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे मनाया क्यों जाता है।
आइए कृष्ण जन्माष्टमी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।
कारण
भगवान कृष्ण के जन्म के कारण मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्योहार
हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान विष्णु के 8वें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस के वध के लिए हुआ था।
एक भविष्यवाणी से कंस को पता चला कि उनकी बहन और भगवान कृष्ण की मां देवकी का 8वां पुत्र उनका वध करेगा।
इस डर से कंस ने उनके 6 बच्चे मार डाले, लेकिन उनके 7वें और 8वें पुत्र को मारने में नाकाम रहे। इसके बाद बड़े होकर कृष्ण ने कंस का वध किया।
तिथि
इस साल कब है कृष्ण जन्माष्टमी?
कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के 8वें दिन मनाई जाती है, जो इस साल 26 अगस्त को है।
अष्टमी तिथि की शुरूआत 26 अगस्त को सुबह 03:39 बजे होगी, जबकि इसकी समाप्ति का समय 27 अगस्त को सुबह 02:19 बजे है।
त्योहार की पूजा का समय 26 अगस्त को रात 12:00 बजे से लेकर 12:45 बजे तक रहेगा।
वहीं रोहिणी नक्षत्र 26 अगस्त को शाम 03:55 बजे से 27 अगस्त को शाम 03:38 बजे तक है।
उपवास
जन्माष्टमी के उपवास का समय क्या है?
कृष्ण जन्माष्टमी का उपवास आमतौर पर भगवान कृष्ण के जन्म के बाद मनाया जाता है।
अगर आप 26 अगस्त को जन्माष्टमी मना रहे हैं तो 27 अगस्त को सुबह 05:56 बजे तक उपवास रखें।
वहीं इस साल दही हांडी 27 अगस्त (मंगलवार) को मनाई जाएगी। इसका प्रदर्शन मथुरा, वृंदावन और मुंबई में ज्यादा देखने को मिलता है।
यहां जानिए देश के विभिन्न हिस्सों में कृष्ण जन्माष्टमी मनाने के तरीके।
तरीका
त्योहार मनाने का तरीका
कृष्ण जन्माष्टमी वाले दिन भक्त जल्दी उठकर सबसे पहले नहाते हैं, फिर नए कपड़े पहनते हैं और उपवास रखते हैं। वे भगवान कृष्ण से आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना भी करते हैं।
लोग अपने घरों को फूलों, दीयों और रोशनी से सजाते हैं। साथ ही कई मंदिरों को भी खूबसूरती से सजाया जाता है।
इस अवसर पर कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है और बाल गोपाल की प्रतिमा को झूला झूलाने का भी रिवाज है।