6 या 7 सितंबर, कब है जन्माष्टमी? जानिए सही तिथि और अन्य महत्वपूर्ण बातें
क्या है खबर?
जन्माष्टमी का त्योहार भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण की जयंती का प्रतीक है। यह भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन पड़ता है।
हालांकि, कई लोग इस त्योहार की तिथि को लेकर बहुत असमंजस है कि इसे 6 सितंबर को मनाएं या 7 सितंबर को।
अगर आप भी इसी कशमकश में हैं तो आइए आज हम आपको कृष्ण जन्माष्टमी की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और अन्य महत्वपूर्ण बातों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
शुभ मुहूर्त
कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त
इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर को है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, त्योहार की पूजा का समय 6 सितंबर को रात 11:57 बजे से 7 सितंबर को सुबह 12:42 बजे तक रहेगा।
इसी बीच अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी, जो 6 सितंबर को दोपहर 3:37 बजे और 7 सितंबर को शाम 4:14 बजे तक समाप्त होगी, जबकि रोहिणी नक्षत्र तिथि 6 सितंबर को सुबह 9:20 बजे से 7 सितंबर को सुबह 10:25 बजे तक है।
इतिहास
भगवान कृष्ण के जन्म के कारण मनाई जाती है जन्माष्टमी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस के वध के लिए हुआ था।
एक भविष्यवाणी से कंस को पता चला कि उनकी बहन और कृष्ण की मां देवकी का आठवां पुत्र उनका वध करेगा। इस डर से कंस ने उनके 6 बच्चों को मार दिया, लेकिन उनके 7वें और 8वें पुत्र को मारने में नाकाम रहे।
इसके बाद बड़े होकर कृष्ण ने कंस का वध किया।
तरीका
त्योहार मनाने का तरीका
जन्माष्टमी के दिन भक्त जल्दी उठकर सबसे पहले नहाते हैं, फिर नए कपड़े पहनते हैं और उपवास रखते हैं।
वे भगवान कृष्ण से आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना भी करते हैं। लोग अपने घरों को फूलों, दीयों और रोशनी से सजाते हैं। साथ ही कई मंदिरों को भी खूबसूरती से सजाया जाता है।
इस अवसर पर कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है और बाल गोपाल की प्रतिमा को झूला झूलाने का भी रिवाज है।
जश्न
देश के विभिन्न हिस्सों में त्योहार मनाने के तरीके
त्योहार के जश्न से जुड़ी परंपराएं और रीति-रिवाज एक जगह से दूसरी जगह में भिन्न होती हैं।
जहां भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और बचपन के घर मथुरा और वृंदावन में 'दही हांडी' के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, वहीं गुजरात में जन्माष्टमी 'रास लीला' कार्यक्रम के साथ मनाई जाती है।
इसमें भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्य, विशेष रूप से गोपियों के साथ उनकी चंचल बातचीत को नृत्य और नाटक के माध्यम से दोहराया जाता है।