गुड़ी पड़वा 2023: जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार, इसका महत्व और अन्य महत्वपूर्ण बातें
गोवा और महाराष्ट्र में हिंदू नववर्ष को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। कहा जाता है कि लोगों ने इस दिन भगवान राम की रावण पर जीत के उपलक्ष्य में गुड़ी या झंडा फहराया था। इस दिन विभिन्न अनुष्ठान होते हैं, जो सूर्योदय से शुरू होकर पूरे दिन चलते हैं। आइए आज इस त्यौहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।
गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है?
हिंदू लूनर कैलेंडर के अनुसार, चैत्र महीने के पहले दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है और यह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के नाम से भी लोकप्रिय है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह त्यौहार उस शुभ दिन का भी प्रतीक माना जाता है, जब भगवान ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। इसके अतिरिक्त, यह भगवान राम की विजय का भी प्रतीक है। इस दिन वह रावण को परास्त कर अयोध्या वापस लौटे थे।
क्या है त्यौहार का महत्व?
महाराष्ट्र और गोवा में गुड़ी पड़वा को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह त्यौहार सभी बुराईयों को दूर करके सौभाग्य और समृद्धि आकर्षित करता है। वहीं आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में इस त्यौहार को उगादी नाम से मनाया जाता है। इसी के साथ उत्तर-भारत में यह चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का लोगों में विशेष महत्व होता है।
गुड़ी पड़वा कैसे मनाया जाता है?
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का जश्न काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान वहां कई जुलूस आयोजित किए जाते हैं। इस मौके पर लोग पारंपरिक कपड़ों को पहनकर तैयार होते हैं, वहीं अपने घर में तरह-रह के पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं। इनमें पूरन पोली, थालीपीठ, आमती और मीठे चावल आदि शामिल हैं। इसी तरह लोग घर में कीर्तन करने के साथ भगवान ब्रह्मा और विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं।
गुड़ी पड़वा से जुड़े अनुष्ठान
इस त्यौहार के अनुष्ठानों की शुरूआत सूर्योदय से पहले होती है। इसके लिए लोग सुबह जल्दी उठते हैं और तेल का उबटन लगाकर नाहते हैं। इसके बाद एक बांस के डंडे के ऊपर चांदी, पीतल या तांबे का उल्टा कलश रखकर उसे नीम के पत्ते, आम की डंठल, फूल और साड़ी या कपड़े से सजाते हैं। फिर डंडे को अपने घर की छत या खिड़की या मुख्य द्वार पर लगाकर पूजा-अर्चना करते हैं।