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इस साल कब है गणेश चुतर्थी? जानिए त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें 

इस साल कब है गणेश चुतर्थी? जानिए त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें 

लेखन अंजली
Aug 20, 2024
08:48 pm

क्या है खबर?

गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या गणेशोत्सव के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान गणेश के जन्म से जुड़ा है। कई लोग इस दिन अपने घरों में 10 दिन तक भगवान गणपति की प्रतिमा की स्थापना करके पूरे श्रद्धा भाव से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। आइए जानते हैं कि भगवान गणेश का जन्म कैसे हुआ और इस साल गणेश चतुर्थी का त्योहार कब है।

इतिहास

भगवान गणेश का जन्म कैसे हुआ था? 

पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार मां पार्वती ने नहाने से पहले अपने शरीर पर हल्दी का उबटन लगाया था और जब उन्होंने उबटन उतारा तो इससे एक पुतला बना दिया, फिर उसमें प्राण डाल दिए। ऐसे भगवान गणेश का जन्म हुआ। हालांकि, भगवान शिव ने क्रोधित होकर भगवान गणेश का सिर काट दिया था। उसके बाद उन्होंने दुखी मां पार्वती को सांत्वना देने के लिए कटे सिर के स्थान पर हाथी का सिर लगा दिया था।

तिथि

इस साल गणेश चतुर्थी कब है?

हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, भगवान गणेश का जन्म अगस्त या सितंबर के ग्रेगोरियन महीने में हुआ था, जो हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष से मेल खाता है। इस साल 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी और 17 सितंबर को 10वें दिन भगवान गणेश की स्थापित प्रतिमा का विसर्जन होगा। वहीं इस बार घर में भगवान गणेश का स्वागत करने का शुभ समय 07 सितंबर को सुबह 11:03 बजे से लेकर दोपहर 01:34 बजे तक है।

महत्व

इस त्योहार का महत्व

गणेशोत्सव सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है क्योंकि पूरे भारत और विदेशों से भक्त भगवान गणेश की पूजा करके सफलता और बाधाओं को दूर करने के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। गणेश चतुर्थी सामुदायिक बंधन, आध्यात्मिक भक्ति और उज्जवल भविष्य के लिए आशा की एक नई भावना को बढ़ावा देती है। भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गोवा राज्यों में गणेशोत्सव मनाया जाता है।

तरीके

गणेशोत्सव मनाने का तरीका 

गणेशोत्सव की शुरुआत भगवान गणेश की प्रतिमा घर में लाने से शुरू होती है। इसके बाद लोग अपने तरीके से सारे अनुष्ठान पूरे करते हैं। इसके अतिरिक्त मोदक और एक मीठी पकौड़ी को भगवान के आगे प्रसाद के रूप चढ़ाया जाता है। त्योहार के अंत में प्रतिमा के विशाल जुलूस को ढोल, भक्ति गीत और नृत्य के साथ पास की नदियों में ले जाया जाता है, फिर अनुष्ठान के हिस्से के रूप में उन्हें विसर्जित किया जाता है।