क्या बिहार में बच्चों की मौत का कारण है लीची? खाने से पहले ऐसे करें पहचान
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार (दिमागी बुखार) का क़हर जारी है। NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक बुखार की वजह से 100 से ज़्यादा बच्चे अपनी जान गँवा चुके हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन मौतों की वजह केमिकल वाली लीची हो सकती है। ऐसे में आज हम आपको बताएँगे कि आप केमिकल वाली लीची की पहचान कैसे कर सकते हैं और कैसे अपना बचाव कर सकते हैं।
केमिकल वाली लीची खाने से बढ़ता है कैंसर का ख़तरा
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आजकल बाज़ार में सबसे ज़्यादा केमिकल वाली चीज़ें बिक रही हैं। फल हो या सब्ज़ी सभी में केमिकल भरपूर मात्रा में होता है। बाज़ार में लाल लीची की माँग हमेशा बनी रहती है, इस वजह से कई बार विक्रेता हरी या बासी लीची को लाल करने के लिए केमिकल का इस्तेमाल करते हैं। ऐसी केमिकल वाली लाल लीची खाने से न केवल स्वास्थ्य ख़राब होता है, बल्कि कैंसर का भी ख़तरा रहता है।
बिहार में होता है लीची का उत्पादन
बिहार के बीचों-बीच से बहने वाली गंडक नदी के उत्तरी भाग में लीची का उत्पादन होता है। हर साल समस्तिपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली और मुज़फ़्फ़रपुर जिलों की कुल 32 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर लीची का उत्पादन किया जाता है। मुज़फ़्फ़रपुर को लीची का गढ़ माना जाता है। मई के आख़िरी और जून के पहले सप्ताह में होने वाली लीची की फ़सल से सीधे तौर पर इस क्षेत्र के 50 हज़ार से भी ज़्यादा किसान परिवारों की आजीविका जुड़ी है।
इस तरह करें केमिकल वाली लीची की पहचान
केमिकल वाली लीची की पहचान करना बहुत ही आसान है। लीची खाने से पहले उसे पानी में डालकर देखें। अगर पानी का रंग बदल जाए, तो समझ जाइए कि लीची में केमिकल मिलाया गया है।
लीची खाते समय बरतें ये सावधानी
जानकारों का कहना है कि ख़ाली पेट लीची खाने से चमकी बुखार का ख़तरा बढ़ रहा है। इसके अलावा सुबह-सुबह लीची खाना भी सेहत को नुकसान पहुँचा सकता है। स्वास्थ्य विभाग ने अभिभावकों को भी चेतावनी दी है कि बच्चों को कच्ची या अधपकी लीची खाने के लिए न दें। इसके अलावा लीची खाने से पहले उसे अच्छे से जाँचे, क्योंकि उसमें कीड़े होते हैं, जो दिमाग तक पहुँचकर आपको नुकसान पहुँचा सकते हैं।
इस वजह से सुबह लीची का सेवन है जानलेवा
कई ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं, जिनका सुबह-सुबह सेवन करना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है, लीची भी उन्ही में से एक है। दरअसल, लीची में "हाइपोग्लायसिन A" और "मेथिलीन सायक्लोप्रोपाइल ग्लायसीन" नामक तत्व पाए जाते हैं। लीची को ख़ाली पेट खाने से ब्लड शुगर स्तर तेज़ी से गिरने लगता है और धीरे-धीरे तबियत बिगड़ने लगती है और व्यक्ति की मौत हो जाती है। बिहार में ज़्यादातर बच्चे इसी का शिकार हुए हैं।
ऐसे करें अपना बचाव
इस बात का ध्यान रखें कि न ही आप या आपके बच्चे ख़ाली पेट लीची का सेवन करें। साथ ही बच्चों के खानपान का ख़ास ख़्याल रखें और बुखार का कोई लक्षण दिखने पर तुरंत जाँच करवाएँ। चमकी बुखार से बचने के लिए किसी की जूठी ड्रिंक, खाने की चीज़ें और बर्तन शेयर न करें, ख़ासतौर से इंफ़ेक्टेड व्यक्ति की चीज़ों का इस्तेमाल न करें। जब भी पानी पीएँ या पिलाएँ, वो पूरी तरह से साफ़ और प्यूरिफ़ाइड होना चाहिए।