बिहार में चमकी बुखार से 43 बच्चों की मौत, जानें इसके लक्षण और घरेलू उपचार
जानकारी के अनुसार, बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर जिले में चमकी बुखार यानी दिमागी बुखार की से अब तक 43 बच्चों की मौत हो चुकी है। वहाँ के हालात इतने ख़राब हैं कि अस्पताल वार्ड बच्चों से भरे हुए हैं। SKMCH अस्पताल में बुखार से पीड़ित 100 से ज़्यादा बच्चे भर्ती हैं। लगातार पीड़ितों की बढ़ती संख्या देखकर अस्पताल प्रशासन ने तीसरी यूनिट खोलने की तैयारी शुरू कर दी है। आइए जानें क्या है चमकी बुखार, इसके लक्षण और उपचार।
क्या है चमकी बुखार?
चमकी बुखार एक ख़तरनाक बीमारी है और इसके कई कारण हो सकते हैं। बच्चों में रब्बिस वायरस, हर्पिस सिम्प्लेक्स पोलियो वायरस, खसरे का विषाणु और छोटी चेचक के विषाणु की वजह से यह बीमारी हो जाती है। जिन बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है, उन्हें बहुत जल्दी यह बुखार अपनी चपेट में ले लेता है। यह बुखार ख़तरनाक जीवाणु इन्सेफेलाइटिस के संक्रमण से होता है, जो शरीर में अपना वायरस तेज़ी से फैलाता है।
चमकी बुखार के लक्षण
जिन बच्चों को यह बुखार होता है, उनके शरीर में ऐंठन होती है और बच्चा बेहोश हो जाता है। इसके अलावा उसे उल्टी आती है और चिड़चिडेपन की शिकायत भी रहती है। चमकी यानी दिमागी बुखार होने पर दिमाग में सूजन भी हो जाती है। साथ ही बच्चे बहकी-बहकी बातें करने लगते हैं और भ्रम के शिकार हो जाते हैं। घातक विषाणु जैसे जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस, सेंट लूसी वायरस, वेस्ट नील वायरस इसके प्रमुख कारण हैं।
2012 में चमकी बुखार से हुई थी 120 बच्चों की मौत
SKMCH अस्पताल के शिशु रोग विभाग के मुख्य डॉक्टर गोपाल शंकर साहनी का कहना है कि इस तरह के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अस्पताल के आँकड़ों के अनुसार, 2012 में इस बुखार से 120 बच्चों की मौत हुई थी।
शरीर को आराम दें और शांत एवं अंधेरे कमरे में रहें
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों को पूरी तरह आराम करवाएँ। बच्चा बहकी-बहकी बात कर रहा हो तो उसकी बातों का जवाब बिना झल्लाए दें। उसके मानसिक संतुलन को बिगड़ने न दें। इस समय उसे ख़ास ख़्याल की ज़रूरत होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को जितना शांत और अंधेरे कमरे में रखेंगे, वह उतनी ही जल्दी ठीक होगा। पीड़ित बच्चे को टीवी और मोबाइल से दूर रखें, वरना उन्हें सिरदर्द की समस्या हो सकती है।
न लें लिक्विड फ़ूड
इस बीमारी में लिक्विड फ़ूड काफ़ी नुकसानदायक होता है। ORS के घोल को गर्म पानी में घोलकर देने के अलावा बच्चे को कोई भी लिक्विड फ़ूड खाने-पीने को न दें। इस बीमारी में लहसुन का सेवन फ़ायदेमंद होता है, इसलिए बच्चों को खाने के लिए लहसुन दें। लहसुन में मौजूद एलिकिन नमक औषधीय तत्व जीवाणुरोधी, एंटी-वायरल, एंटी-फंगल और एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर होता है, जो बीमारी से बचाते हैं।
खाएँ घर का बना खाना
आमतौर पर यह बीमारी 13-14 साल के बच्चों को होती है, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि केवल बच्चे ही इसके शिकार हों। जिन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है, वो भी इसकी चपेट में आ सकते हैं, ख़ासतौर से बुज़ुर्ग इसके शिकार जल्दी होते हैं। ऐसे में बुखार होने पर ज़्यादातर घर का बना खाना खाएँ। इसके अलावा घर के बने खाने को ढाँककर रखें। इससे आपके बच्चों और घर के बुज़ुर्गों का बीमारी से बचाव होगा।