साहित्यकार गीतांजलि श्री का 'टॉम्ब ऑफ सैंड' बना बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास
भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री के अनुवादित उपन्यास 'टॉम्ब ऑफ सैंड' (Tomb Of Sand) को प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है। इसके साथ ही यह प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल करने वाला हिंदी भाषा का पहला उपन्यास भी बन गया है। बता दें कि गीतांजलि श्री ने इस उपन्यास को हिंदी भाषा में 'रेत समाधि' शीर्षक से प्रकाशित किया था। बाद में अमेरिकन अनुवादक डेजी रॉकवेल ने टॉम्ब ऑफ सैंड शीर्षक से इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
गीतांजलि को लंदन में मिला पुरस्कार
गीतांजलि श्री को यह प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार गुरुवार को लंदन में आयोजित एक समारोह में दिया गया था। उन्हें अपने उपन्यास के लिए 50,000 हजार पाउंड (करीब 50 लाख रुपये) की इनामी राशि और प्रशस्ति पत्र दिया गया है। वह अब इस पुरस्कार राशि को उपन्यास के अंग्रेजी अनुवादक डेजी रॉकवेल के साथ साझा करेगी। इस उपन्यास को यह पुरस्कार मिलना गीतांजलि और देश दोनों के लिए गर्व की बात है।
इन उपन्यासों से था 'टॉम्ब ऑफ सैंड' का मुकाबला
लंदन पुस्तक मेले में बुकर सम्मान के लिए 'टॉम्ब ऑफ सैंड' का पांच अन्य उपन्यासों से मुकाबला था। इनमें बोरा चुंग का कोरियाई भाषा से अनुवादित 'कर्स्ड बनी', जॉन फॉसे का नार्वेई भाषा से अनुवादित 'ए न्यू नेम: सेप्टोलॉजी VI-VII', मीको कावाकामी का जापानी भाषा से अनुवादित 'हेवेन', क्लाउडिया पिनेरो का स्पेनिश भाषा से अनुवादित 'एलेना नोज' और ओल्गा टोकार्ज़ुक का पोलिश भाषा से अनुवादित 'द बुक्स ऑफ जैकब' उपन्यास शामिल था। आखिर में 'टॉम्ब ऑफ सैंड' ने बाजी मारी।
जजों ने 'टॉम्ब ऑफ सैंड' को बताया एक चमकदार उपन्यास
जजों के पैनल की अध्यक्षता करने वाले अनुवादक फ्रैंक वाईन ने बताया कि जजों ने काफी चर्चा के बाद बहुमत से इस पुरस्कार के लिए 'टॉम्ब ऑफ सैंड' का चुनाव किया था। उन्होंने कहा कि यह भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, जिसकी मंत्रमुग्धता, करुणा युवा उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को कई आयाम में ले जाती है। उन्होंने कहा कि दर्दनाक घटनाओं का सामना करने के बावजूद यह एक असाधारण रूप से अविश्वसनीय उपन्यास है।
क्या है 'टॉम्ब ऑफ सैंड' की कहानी?
'टॉम्ब ऑफ सैंड' एक 80 वर्षीय विधवा की कहानी है, जो 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन में अपने पति को खोने के बाद गहरे अवसाद में चली जाती है। काफी संघर्ष से वह अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूटे अतीत का सामना करने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'रेत समाधि' हिंदी का पहला उपन्यास है जो बुकर पुरस्कार की लॉन्गलिस्ट और शॉर्टलिस्ट में जगह बनाकर अव्वल रहा है।
"मैंने कभी नहीं देखा था बुकर पुरस्कार का सपना"
अपने उपन्यास को बुकर पुरस्कार मिलने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा, "मैंने कभी बुकर पुरस्कार का सपना नहीं देखा था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा कर सकती हूं। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं चकित, प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं।" उन्होंने कहा, "जब कोई काम दूर बैठे अज्ञात लोगों को आकर्षित करता है। यही सच्चा समर्थन है। अनुवाद बेहतरीन होना चाहिए। डेजी और मेरे लिए यह बहुत खास पल है।"
कौन है लेखिका गीजांजलि श्री?
बता दें कि हिंदी भाषा की लेखिका गीतांजलि श्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। उन्होंने अब तक तीन उपन्यास और कई लघु कथाएं लिखी हैं। उनका पहला उपन्यास 'माई' और फिर 'हमारा शहर उस बरस' 1990 में प्रकाशित हुआ था। 'माई' के अंग्रेजी अनुवाद को 'क्रॉसवर्ड अवॉर्ड' के लिए भी नॉमिनेट किया गया था। उनके कई उपन्यास और कहानियों का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, सर्बियाई और कोरियाई भाषा में अनुवाद किया जा चुका है।