लोकसभा चुनाव: पश्चिम बंगाल में सदियों पुराना प्लासी का युद्ध चर्चा में क्यों है?
क्या है खबर?
आपने इतिहास की किताबों में 1757 के प्लासी के युद्ध के बारे में जरूर पढ़ा होगा, जो बंगाल के आखिरी नवाब सिराजुद्दौला और ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ा गया था।
इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और उन्होंने बंगाल पर कब्जा कर लिया। यह युद्ध इसलिए अहम है क्योंकि इसे भारत में अंग्रेजों के राज की शुरुआत माना जाता है।
अब पश्चिम बंगाल में इस युद्ध का जिक्र हो रहा है। आइए इसका कारण जानते हैं।
कारण
इस वजह से हो रही प्लासी के युद्ध की चर्चा
लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल में सिराजुद्दौला और प्लासी के युद्ध के जिक्र की वजह नदिया जिले की कृष्णनगर सीट से भाजपा उम्मीदवार अमृता राय हैं।
अमृता कृष्णनगर के पूर्व राजपरिवार की बहू हैं और उन्हें 'राजमाता' और 'रानी मां' कहकर भी संबोधित किया जाता है।
इस राजपरिवार के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्णचंद राय थे, जिनके नाम पर ही कृष्णनगर का नाम पड़ा है।
आरोप लगता है कि उन्होंने सिराजुद्दौला को धोखा दिया था और अंग्रेजों का साथ दिया था।
इतिहास
कौन थे राजा कृष्णचंद राय?
कृष्णचंद राय प्लासी के युद्ध के तहत नदिया के राजा थे और उनके अंतर्गत 84 परगने आते थे। हालांकि, राजा होने के बावजूद वे नवाब के अधीन थे और एक जमींदार जैसे थे। राय 1728 में मात्र 18 साल की उम्र में राजा बन गए थे।
राय एक शक्तिशाली राजा थे, लेकिन धार्मिक या सामाजिक सुधार के प्रति उनकी कोई रुचि नहीं रही, बल्कि उन्होंने धार्मिक कुरीतियों को बढ़ावा दिया।
उन्हें तत्कालीन रूढ़िवादी हिंदू समाज का मुखिया माना जाता था।
इतिहास
क्या सच में कृष्णचंद राय ने अंग्रेजों का साथ दिया था?
BBC के अनुसार, इतिहासकार शिवनाथ शास्त्री ने अपनी 'रामतनु ओ तत्कालीन बंगसमाज' किताब में लिखा है कि राय बुलावे पर सिराजुद्दौला के खिलाफ बैठक में शामिल हुए थे और उनकी सलाह पर ही अंग्रेजों से मदद मांगने का फैसला लिया गया था।
'पलासी का षड्यंत्र और तत्कालीन समाज' नामक पुस्तक लिखने वाले इतिहासकार रजत कांत राय ने बताया, "कृष्णचंद्र ने निश्चित तौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से हाथ मिलाया था। प्लासी के षड्यंत्र में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी।"
मुख्य साजिशकर्ता
क्या मुख्य साजिशकर्ता थे राय?
1805 में राजा कृष्णचंद्र राय की जीवनी में राजीव लोचन बंद्योपाध्याय ने लिखा कि राय ने सिराजुद्दौला के खिलाफ साजिश रचने वाले सभासदों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच एक सेतु के तौर पर काम किया था।
जीवनी के अनुसार, राय पूजा के बहाने कालीघाट में ब्रिटिश अधिकारियों से मिले थे और उन्हें योजना की जानकारी दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि वे सिराजुद्दौला के मुख्य सेनापति मीर जाफर को अपनी तरफ करने में कामयाब रहे हैं।
बयान
राय की भूमिका पर राजमाता अमृता राय का क्या कहना है?
भाजपा की उम्मीदवार राजमाता अमृता राय का कहना है कि उनके पूर्वज कृष्णचंद्र राय ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए सिराजुद्दौला के खिलाफ अंग्रेजों से हाथ मिलाया था।
उन्होंने कहा कि सिराजुद्दौला के अत्याचारों से तंग आकर राय का अंग्रेजों से हाथ मिलाना पड़ा और अगर वे ऐसा नहीं करते तो सनातन धर्म का अस्तित्व नहीं बचता।
हालांकि, इतिहासकार रजत कांत राय ने बताया कि अंग्रेजों के राज की तुलना में नवाब के शासन में हिंदू ज्यादा सुरक्षित थे।
कैद
अंत में राय के साथ क्या हुआ?
मीर जाफर ने बंगाल की सत्ता संभालने के बाद अपने बेटे मीरन को कमान सौंप दी। हालांकि, 1763 में मीरन की मौत हो गई, जिसके बाद जाफर का दामाद मीर कासिम नवाब बना।
अंग्रेजों से मतभेद के बाद वह अपनी राजधानी मुंगेर ले गया और उन लोगों को मारने लगा, जिन्हें वह अंग्रेज समर्थक मानता था।
इसी कड़ी में उसने राय और उनके बेटे शिवचंद्र को गिरफ्तार किया। हालांकि, अंग्रेजों से उन्हें छुड़ा लिया।
राय का 1782 में निधन हुआ।