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    क्या है UPSC का लेटरल एंट्री से भर्ती निकालने का मामला, जिसको लेकर हो रहा विरोध?
    UPSC ने लेटरल एंट्री के जरिए 45 पदों पर भर्ती निकाली है

    क्या है UPSC का लेटरल एंट्री से भर्ती निकालने का मामला, जिसको लेकर हो रहा विरोध?

    लेखन आबिद खान
    Aug 18, 2024
    01:56 pm

    क्या है खबर?

    संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने लेटरल एंट्री के जरिए अब तक की सबसे बड़ी भर्ती निकाली है।

    इसके जरिए अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों में निदेशक और संयुक्त सचिव जैसे 45 पदों पर भर्ती की जाएगी।

    यह सरकारी नौकरी 3 साल के लिए अनुबंध के आधार पर होगी। भर्ती का विज्ञापन जारी होने के बाद विपक्षी नेताओं ने इस पर सवाल भी उठाए हैं।

    आइए जानते हैं मामला क्या है।

    भर्ती

    सबसे पहले UPSC की भर्ती के बारे में जानिए

    UPSC ने संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर के 45 पदों के लिए भर्ती निकाली है। यह बिना किसी परीक्षा के सीधी भर्ती होगी, जिसका कार्यकाल अधिकतम 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

    संयुक्त सचिव पद के लिए 15 साल, निदेशक के लिए 10 साल और उपसचिव के लिए 7 साल काम का अनुभव मांगा गया है। अलग-अलग पदों के लिए शैक्षणिक योग्यताएं भी निर्धारित की गई हैं।

    17 सितंबर तक भर्ती के लिए आवेदन किया जा सकता है।

    लेटरल एंट्री

    क्या है लेटरल एंट्री?

    लेटरल एंट्री का मतलब सरकारी विभागों में विशेषज्ञों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाने की प्रक्रिया है।

    2018 से केंद्र सरकार संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर इस तरह की भर्तियां कर रही हैं।

    दरअसल, सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र के अनुभवी अधिकारियों को विभिन्न विभागों में नियुक्त किया जाए। इसके पीछे का सबसे बड़ा उद्देश्य नौकरशाही में अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के कौशल का उपयोग करना है।

    वजह

    क्यों की जा रही है लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती?

    सरकार का मानना है कि अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों के आने से नीति निर्माण और कार्यान्वयन में सुधार होगा। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य सरकारी क्षेत्र में निजी क्षेत्र के अनुभव को शामिल करना है।

    नीति आयोग ने भी एक रिपोर्ट में लेटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों को सरकारी क्षेत्र में लाने की जरूरत जताई थी। 2019 में पहली बार 9 विशेषज्ञों को लेटरल एंट्री के जरिए संयुक्त सचिव के पदों पर नियुक्त किया गया था।

    पुरानी भर्ती

    क्या पहले भी लेटरल एंट्री से भर्ती हुई है?

    विशेषज्ञता के आधार पर सरकार में नियुक्ति के दर्जनों उदाहरण भरे पड़े हैं।

    पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बिना किसी सिविल सेवा परीक्षा के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था।

    रघुराम राजन भी बिना कोई UPSC परीक्षा दिए संयुक्त सचिव के स्तर से होते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर बने।

    इसी तरह बिमल जालान भी ICICI बैंक से होते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर बने। NTPC के संस्थापक डीवी कपूर ऊर्जा मंत्रालय में सचिव बने थे।

    सरकार

    मामले पर सरकार का क्या कहना है?

    सरकार का कहना है कि लेटरल एंट्री के तहत उच्च पदों पर नियुक्तियां पहली बार नहीं की जा रही हैं, बल्कि पहले भी की जाती रही हैं।

    सरकार का मानना है कि ऐसा करने से विकास की नई अवधारणा से नौकरशाही खुद को सीधे तौर पर जोड़ सकेगी।

    जानकारों का मानना है कि सीधी भर्ती के जरिए सरकार नौकरशाही में सुधार करना चाहती है, लेकिन इसे राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रखा जाना चाहिए।

    विरोध

    विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध?

    विपक्ष ने इस कदम को आरक्षण और कोटा प्रणाली पर हमला बता रहा है। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'संविधान को तार-तार करने वाली भाजपा ने आरक्षण पर दोहरा हमला किया है! एक सुनियोजित साजिश के तहत, भाजपा जानबूझकर नौकरियों में ऐसी भर्तियां कर रही है, ताकि SC, ST, OBC वर्गों को आरक्षण से दूर रखा जा सके।'

    तेजस्वी यादव ने भी इसे आरक्षण प्रणाली और डॉक्टर अंबेडकर की ओर से तैयार संविधान पर गंदा मजाक बताया।

    अखिलेश यादव

    अखिलेश ने किया आंदोलन का ऐलान

    मामले को लेकर अखिलेश यादव ने आंदोलन का ऐलान किया है।

    उन्होंने कहा, 'अधिकारियों और युवाओं से आग्रह है कि यदि भाजपा सरकार इसे वापस न ले तो 2 अक्टूबर से एक नया आंदोलन शुरू करने में हमारे साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हों।'

    बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने कहा, 'इन सरकारी नियुक्तियों में SC, ST व OBC वर्गों के लोगों को उनके कोटे के अनुसार अगर नियुक्ति नहीं दी जाती है तो यह संविधान का सीधा उल्लंघन होगा।'

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