UPSC लेटरल एंट्री भर्ती को सरकार ने क्यों किया निरस्त और इस पर क्या है विरोध?
केंद्र सरकार ने मंगलवार को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को लेटरल एंट्री के जरिए की जानी वाली 45 सचिव, निदेशकों और उप-सचिवों की भर्ती के विज्ञापन को निरस्त करने के लिए कहा है। इसके लिए केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC प्रमुख को पत्र लिखकर इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश का हवाला भी दिया है। ऐसे में आइए जानते हैं कि सरकार ने आखिर भर्ती को निरस्त करने का कदम क्यों उठाया है।
पहले जानिए क्या होती है लेटरल एंट्री
लेटरल एंट्री से भर्ती का मतलब सरकारी विभागों में विशेषज्ञों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त किए जाने की प्रक्रिया है। साल 2018 से केंद्र सरकार संयुक्त सचिव, निदेशक और उप-सचिव के स्तर पर इस तरह की भर्तियां कर रही हैं। दरअसल, सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र के अनुभवी अधिकारियों को विभिन्न विभागों में नियुक्त किया जाए। इसके पीछे का सबसे बड़ा उद्देश्य नौकरशाही में अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के कौशल का उपयोग करना है।
केंद्रीय मंत्री ने पत्र में क्या लिखा?
केंद्रीय मंत्री ने पत्र में लिखा 'अधिकतर लेटरल एंट्री 2014 से पहले हुई थी और इन्हें एडहॉक स्तर पर किया था। प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होनी चाहिए। विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। सामाजिक न्याय की दिशा में संवैधानिक जनादेश बनाए रखना जरूरी है ताकि वंचित समुदायों का सरकारी नौकरियों में सम्मानपूर्ण प्रतिनिधित्व हो।'
केंद्रीय मंत्री ने भर्ती निरस्त करने का क्या बताया कारण?
केंद्रीय मंत्री ने लिखा, 'लेटरल एंट्री से भरे जाने वाले पद एकल-कैडर के रूप में नामित है, इसलिए इनमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने पर प्रधानमंत्री मोदी के फोकस के संदर्भ में इस पहलू की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है।' उन्होंने लिखा, 'प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि वह UPSC से लेटरल एंट्री के विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह करते हैं। यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति होगी।'
सबसे पहले कब हुई थी लेटरल एंट्री से भर्ती?
लेटरल एंट्री की शुरुआत, कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के दौरान 2005 में स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिश पर हुई थी। वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली ARC ने सिविल सेवाओं में अनुपलब्ध विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता वाली भूमिकाओं को भरने के लिए इस तरह की भर्ती की वकालत की थी। उसमें कहा गया था कि नीति कार्यान्वयन और शासन में सुधार के लिए व्यक्तियों को PSU, निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत से काम पर रखें।
लेटरल एंट्री से कहां मिलते हैं नौकरी के अवसर?
लेटरल एंट्री से सेमी-कंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स, पर्यावरण नीति और कानून, डिजिटल अर्थव्यवस्था, फिनटेक और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में संयुक्त सचिव के पद भरे जाते हैं। इसी तरह जलवायु परिवर्तन, वानिकी, एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन, प्राकृतिक खेती, वर्षा आधारित कृषि प्रणाली से संबंधित विभागों में निदेशक और उप सचिवों के पद मिलते हैं। यह नियुक्ति अनुबंध के आधार पर होती है, जिसका कार्यकाल 3 वर्ष होता हैं। हालांकि, काम अच्छा होने पर सरकार इसे 5 साल तक बढ़ा सकती है।
लेटरल एंट्री को लेकर क्यों है विवाद?
लेटरल एंट्री भर्ती में आरक्षण 13-पॉइंट रोस्टर नीति के तहत दिया जाता है, लेकिन कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने इस भर्ती के लिए उल्लेख किया है कि अनुबंध पर नियुक्तियों के लिए कोई अनिवार्य आरक्षण नहीं है। विपक्ष ने इसी को मुद्दा बना लिया। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि एक सुनियोजित साजिश के तहत, भाजपा जानबूझकर नौकरियों में ऐसी भर्तियां कर रही है, ताकि SC, ST, OBC वर्गों को आरक्षण से दूर रखा जा सके।
विपक्षी नेताओं ने क्या लगाए आरोप?
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार आरक्षित वर्ग का हक मारना चाहती है, लेकिन वह ऐसा नहीं होने देंगे। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने युवाओं से भर्ती को वापस न लेने पर उनके साथ 2 अक्टूबर से एक नया आंदोलन शुरू करने की अपील की थी। बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि लेटरल भर्ती में SC, ST व OBC को आरक्षण न दिया जाना संविधान का सीधा उल्लंघन होगा।