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भाजपा संकल्प पत्र: धारा 370 खत्म करने का वादा, जानिए क्या है इस धारा का इतिहास

भाजपा संकल्प पत्र: धारा 370 खत्म करने का वादा, जानिए क्या है इस धारा का इतिहास

Apr 09, 2019
11:05 am

क्या है खबर?

केंद्र शासित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कल अपना 'संकल्प पत्र' जारी किया। पार्टी ने अपने घोषणापत्र में 75 ऐसे वादे किए हैं जिन्हें 2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे होने तक पूरा किया जाएगा। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और धारा 35A को खत्म करने की बात कही है। आइए जानते हैं कि धारा 370 आखिर है क्या और क्यों इसको लेकर बार-बार बवाल होता है।

धारा 370

क्या है धारा 370?

भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता और विशेष अधिकार प्रदान करती है। धारा 370 संविधान का एक अस्थाई प्रावधान है और इनमें मिले विशेष अधिकारों के तहत राज्य को अपना एक अलग संविधान और झंडा रखने का अधिकार है। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और जम्मू-कश्मीर) होती है। धारा के तहत भारत सरकार केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार के मसलों में ही राज्य में हस्तक्षेप कर सकती है।

जम्मू-कश्मीर

जम्मू-कश्मीर में सीधे लागू नहीं होते भारत के नियम

इन तीनों के अलावा अगर किसी अन्य कानून को राज्य में लागू करना है तो केंद्र सरकार को इसके लिए राज्य विधानसभा से मंजूरी लेनी होती है। धारा 370 के कारण बाहर के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते। राज्य में भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को अपराध नहीं माना जाता और यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश सीधे लागू नहीं होते। भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकार भी जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को नहीं मिलते।

विशेष अधिकार

राष्ट्रपति नहीं लगा सकते आपातकाल

पूरे भारत से अलग जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है। राज्य में सूचना का अधिकार कानून (RTI) भी लागू नहीं होता और इसका RTI जैसा एक अलग कानून है। भारत के राष्ट्रपति युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति के बिना किसी भी अन्य स्थिति में राज्य में आपातकाल नहीं लगा सकते। राज्य को विशेष अधिकार देने वाली यह आखिर सबसे पहले धारा अस्तित्व में कैसे आई, आइए इसके बारे में जानते हैं।

इतिहास

ऐसे अस्तित्व में आई धारा 370

पाकिस्तान के आक्रमण के बाद जब जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पर हस्ताक्षर किए तो विषम परिस्थितियों के कारण राज्य को विशेष अधिकार देने की बात हुई। नेहरू के मंत्रिमंडल में बिना प्रभार के मंत्री गोपालस्वामी आयंगर को शेख अब्दुल्ला के साथ यह विशेष जिम्मेदारी दी गई। आयंगर की अब्दुल्ला से कई मसलों पर बहस हुई। अंत में उन्होंने धारा 306-ए का प्रारूप संविधान सभा में पेश किया, जो आगे चलकर धारा 370 बनी।

भारतीय जनता पार्टी

भाजपा करती रही है धारा 370 को खत्म करने की मांग

कश्मीर के नागरिक यहां दावा करते हैं कि समय के साथ धारा 370 को कमजोर किया गया और अब कुछ क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो भारत का राज्य के हर मामले में लगभग सीधा हस्तक्षेप है। वहीं, देश के अन्य इलाकों के लोग धारा 370 को राज्य में अलगाववादी प्रवृत्ति पनपने और आतंकवाद की राह आसान होने के लिए जिम्मेदार मानते हैं। इसी कारण केंद्र शासित भाजपा समेत कई धड़ों की मांग रही है कि इसे खत्म किया जाए।

तरीका

कैसे खत्म हो सकती है धारा 370?

राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर को धारा 370 को खत्म करने का अधिकार है, लेकिन वह ऐसा केवल राज्य की विधानसभा की सलाह पर ही कर सकते हैं। संसद कानून पारित करके इस प्रावधान को बदलने की शक्ति रखती है, लेकिन अगर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली तो वहां इसे असंवैधानिक ठहराया जा सकता है। बता दें कि केवल कश्मीर ही नहीं, संविधान की धारा 371, 371-A और 371-I अन्य राज्यों को भी विशेष अधिकार प्रदान करती हैं।