
अमेरिका से बाहर पैसे भेजने पर लगेगा 5 प्रतिशत टैक्स, लाखों भारतीयों पर क्या होगा असर?
क्या है खबर?
अमेरिका में रह रहे लाखों भारतीयों के लिए एक और निराशाजनक खबर है। अब अमेरिका में रहने वाले भारतीयों को अपने घर पैसे भेजना महंगा पड़ सकता है। अमेरिकी सरकार रेमिटेंस यानी राशि भेजने पर 5 प्रतिशत टैक्स लगाने का विचार कर रही है।
इस संबंध में संसद में एक विधेयक भी लाने की तैयारी है, जिसे 'द वन बिग ब्यूटिफुल बिल' नाम दिया गया है।
आइए जानते हैं इसका क्या असर होगा।
विधेयक
नए विधेयक में क्या-क्या है?
'द वन बिग ब्यूटिफुल विधेयक' को अमेरिकी हाउस वेज एंड मीन्स समिति की तरफ से जारी किया गया है।
389 पन्नों के इस विधेयक में ऐसे सभी तरह के पैसों के ट्रांसफर पर 5 प्रतिशट टैक्स लगाने का प्रावधान है। विधेयक में न्यूनतम राशि का भी जिक्र नहीं है। यानी हर ट्रांसफर पर टैक्स देना होगा।
सरकार ने विधेयक का उद्देश्य कर में छूट प्रदान करना, सरकारी खर्च को कम करना और सीमा सुरक्षा को मजबूत करना बताया है।
टैक्स
किन-किन लोगों को देना होगा टैक्स?
यह टैक्स उन सभी रेमिटेंस पर लागू होगा, जो विदेशी मुद्रा विनिमय या दूसरे वित्तीय माध्यमों के जरिए भेजे जाते हैं।
प्रस्तावित विधेयक में केवल एकमात्र छूट सत्यापित अमेरिकी नागरिकों द्वारा भेजे जाने वाले ट्रांसफर पर दी गई है। इन व्यक्तियों को अमेरिका के ट्रेजरी सचिव के साथ लिखित समझौते के माध्यम से सेवा प्रदाता द्वारा योग्य धन प्रेषण हस्तांतरण प्रदाता के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
इनके अलावा बाकी सभी लोगों को टैक्स देना होगा।
भारतीय
भारतीयों पर क्या होगा असर?
इस कदम से सभी H1B और L1 वीजा धारक प्रभावित होंगे, जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर हैं। अक्टूबर, 2022 से सितंबर, 2023 के बीच जारी किए गए सभी H-1B वीजा में से 70 प्रतिशत से अधिक भारतीयों को मिले हैं।
भारत को सबसे ज्यादा रेमिटेंस अमेरिका से ही मिलता है। भारत में आने वाले कुल रेमिटेंस का 27.7 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका से आता है। 2023-24 में भारत को कुल 10.14 लाख करोड़ रुपये का रेमिटेंस प्राप्त हुआ था।
असर
ये असर भी होगा
सबसे ज्यादा असर उन NRI पर होगा, जो भारत में अपने परिवार को नियमित वित्तीय मदद भेजते हैं। पहले से ही विदेशी मुद्रा विनिमय दरों और बैंक शुल्कों का सामना कर रहे NRI पर इससे आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
जानकारों का मानना है कि इस टैक्स से रेमिटेंस आना कम हो सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा की आवक प्रभावित होगी।
अनुमान है कि इससे सालाना 14,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।