
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR की मांग वाली याचिका ठुकराई
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने घर से बेहिसाब नकदी मिलने के मामले में फंसे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR की मांग करने वाली कई वकीलों की याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति अभय ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा का जवाब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पहले ही भेज दिया है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास जाना चाहिए।
सुनवाई
कोर्ट ने क्या कहा?
लाइव लॉ के मुताबिक, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कार्रवाई की मांग करते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के समक्ष कोई प्रतिवेदन दायर नहीं किया, इसलिए परमादेश की मांग करने वाली यह याचिका विचार योग्य नहीं।
अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा और 3 अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका पर न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि मूल नियम का पालन किया जाए और जिनके समक्ष यह मुद्दा लंबित हैं, उनके सामने अभिवेदन करें।
उन्होंने कहा, "अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा कार्रवाई की जानी है।"
रिपोर्ट
जांच समिति ने क्या दी है रिपोर्ट
न्यायमूर्ति वर्मा मामले की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय आंतरिक समिति ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन CJI संजीव खन्ना को सौंप दी थी।
रिपोर्ट में समिति ने उनको दोषी ठहराया और कई आरोप लगाए हैं। रिपोर्ट के आधार पर न्यायमूर्ति वर्मा को इस्तीफा देने या फिर महाभियोग की कार्रवाई का सामना करने को कहा गया था।
न्यायमूर्ति ने इस्तीफा देने से मना कर दिया है।
अब रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भेजी गई है।
विवाद
क्या है मामला?
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास के स्टोर रूम में 14 मार्च आग लग गई थी। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा शहर में नहीं थे।
उनके परिवार ने अग्निशमन और पुलिस को बुलाया। आग बुझाने के बाद टीम को घर से भारी मात्रा में नकदी मिली थी।
इसकी जानकारी तत्कालीन CJI संजीव खन्ना को हुई तो उन्होंने कॉलेजियम बैठक बुलाकर न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया।
इसके बाद जांच समिति गठित हुई थी।
जानकारी
समिति में कौन थे शामिल?
समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश अनु शिवरामन शामिल थे। कमेटी का गठन 22 मार्च को हुआ, जिसने 25 से जांच शुरू की।