
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का न्यायपालिका पर हमला, बोले- कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती
क्या है खबर?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे।
उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को आदेश दें।
धनखड़ की ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आई है, जिसमें कोर्ट ने राष्ट्रपति से विधेयक पर फैसला लेने की समयसीमा निर्धारित की थी।
बयान
धनखड़ बोले- इस दिन की कल्पना नहीं की थी
धनखड़ ने कहा, "एक हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है। हमने इस दिन की कल्पना नहीं की थी, जहां राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने के लिए कहा जाएगा और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा। अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी, क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।"
टिप्पणी
धनखड़ ने कहा- न्यायपालिका को सिर्फ संविधान की व्याख्या का अधिकार
धनखड़ ने कहा, "राष्ट्रपति देश का सबसे सर्वोच्च पद है। राष्ट्रपति संविधान की सुरक्षा की शपथ लेते हैं। जबकि सांसद, मंत्री, उपराष्ट्रपति और जजों को संविधान का पालन करना होता है। हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिए जाएं। आपको सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या का अधिकार है और वह भी 5 या उससे ज्यादा जजों की संविधान पीठ ही कर सकती है।"
जज नगदी मामला
धनखड़ ने जज के घर से नगदी मिलने पर भी उठाए सवाल
धनखड़ ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश के घर से भारी नकदी मिलने पर भी सवाल उठाए।
उन्होंने कहा, "घटना के एक हफ्ते तक कोई जानकारी सामने नहीं आई, जिससे पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। अभी तक जज के खिलाफ कोई FIR दर्ज नहीं की गई, जबकि देश में किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी पर कार्रवाई हो सकती है, लेकिन न्यायपालिका के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता क्यों हो, यह संविधान में नहीं लिखा है।"
मामला
क्या है राष्ट्रपति को आदेश देने का मामला?
दरअसल, तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी न देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था।
इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर 3 महीने की भीतर फैसला लेना होगा और अगर इससे ज्यादा देरी होती है तो राज्य को इसका कारण भी बताना होगा।
ये फैसला ऐतिहासिक था, क्योंकि पहली बार कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए इस तरह की समय सीमा निर्धारित की थी।