गर्भपात मामला: महिला नहीं मानी, सुप्रीम कोर्ट ने भ्रूण की दोबारा जांच करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट में 26 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात को लेकर सुनवाई चल रही है। इस दौरान आज अतिरिक्त महाधिवक्ता (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि दुर्भाग्य से हम मां को गर्भपात नहीं करने के लिए मना नहीं पाए हैं और अब अदालत को फैसला करना होगा। इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने AIIMS से कहा कि वो भ्रूण में किसी भी असामान्यता की जांच करे।
कोर्ट में क्या-क्या हुआ?
ASG भाटी ने कहा, "जीवन का समर्थन करने वाले देश गर्भपात को पूरी तरह से खत्म कर चुके हैं। धारा-3, 20 सप्ताह तक एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था की समाप्ति से संबंधित है। जब यह 20 से अधिक हो और 24 सप्ताह से कम हो तो 2 चिकित्सकों की सलाह जरूरी है।" ASG भाटी ने कहा कि दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है, जो 24 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता हो।
CJI बोले- ये मामले भ्रूण के असामान्य होने का भी नहीं
पीठ ने कहा कि भ्रूण की असामान्यता के साथ पैदा हुआ बच्चा माता-पिता के जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा और इसका असर बच्चे के जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ेगा। पीठ ने कहा, "ये मामला भ्रूण के असामान्य होने में भी नहीं आता। हम AIIMS को महिला के डिप्रेशन की बीमारी की जांच करने को कहेंगे। साथ ही ये भी जांच कराएंगे कि भ्रूण में कोई असामान्यता तो नहीं है।"
क्या है मामला?
एक शादीशुदा महिला ने अपने तीसरे गर्भ के गर्भपात की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से मांगी है। महिला का कहना है कि उसके पहले से 2 बच्चें हैं और वो मानसिक-आर्थिक तौर पर तीसरे बच्चे की परवरिश के लिए सक्षम नहीं है। महिला ने दलील दी है कि वो मानसिक अवसाद से जूझ रही है और इसके लिए दवाई भी ले रही है। महिला का कहना है कि ऐसी स्थिति में उसे अनचाही गर्भावस्था के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने दे दी थी गर्भपात की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने 9 अक्टूबर को महिला को गर्भपात की अनुमति दे दी थी। कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा था, "हम मानते हैं कि अपने शरीर पर महिला का अधिकार है। अगर अनचाहे गर्भधारण से बच्चा इस दुनिया में आएगा तो उसके लालन-पालन की जिम्मेदारी महिला पर ही आएगी।" हालांकि, अगले ही दिन केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि भ्रूण के बचने की संभावना है, जिसके बाद कोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी थी।
भारत में गर्भपात को लेकर क्या नियम हैं?
गर्भपात को लेकर भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) कानून, 1971 है। इस कानून में 2020 में कुछ संशोधन किए गए हैं। इसके तहत अधिकतम 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत है। हालांकि, मेडिकल बोर्ड की सिफारिश, रेप पीड़िता और बाकी कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इस अवधि को 26 हफ्तों तक बढ़ाया भी जा सकता है। संशोधन से पहले ये अवधि 20 हफ्ते तक थी।