सुप्रीम कोर्ट का बिहार सरकार को आदेश- जातिगत सर्वे के संपूर्ण आंकड़े सार्वजनिक करो
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में जातिगत सर्वे की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की।
इस दौरान न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को मामले में कोई भी अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
हालांकि, कोर्ट ने बिहार सरकार को जातिगत सर्वे के संपूर्ण आंकड़े सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर डालने को कहा, ताकि इस सर्वे के निष्कर्षों को चुनौती दी जा सके।।
मामला
याचिककर्ताओं का सर्वे के आंकड़ों पर बहस का अनुरोध
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील राजू रामचंद्रन ने कोर्ट से आग्रह करते हुए कहा कि वह बिहार जातिगत सर्वे के आंकड़ों पर अंतरिम राहत के लिए बहस करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जल्दबादी में सर्वे के आधार पर तुरंत आरक्षण दिया जा रहा है और सर्वे का आदेश देने वाले हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती मिली हुई है।
उन्होंने कोर्ट से संपूर्ण सर्वे पर बहस का अनुरोध किया क्योंकि अगस्त से सुनवाई लंबित है।
कोर्ट
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले में याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, "मैं जिस चीज को लेकर अधिक चिंतित हूं, वह संपूर्ण आंकड़ों को लेकर है। सरकार किस हद तक आंकड़ों को रोक सकती है? सर्वे के संपूर्ण आकंड़े सार्वजनिक होने चाहिए, ताकि कोई भी इससे निकले निष्कर्ष को चुनौती दे सके। जब तक आंकड़े सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर नहीं हैं, इन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती है।"
जातिगत सर्वे
बिहार जातिगत सर्वे में क्या आंकड़े सामने आए थे?
बिहार में 2 अक्टूबर को जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी हुए थे।
इसके अनुसार, राज्य की कुल आबादी 13 करोड़ है, जिसमें से 63 प्रतिशत आबादी पिछली जातियों (OBC) (27 प्रतिशत पिछड़े और 36 प्रतिशत अत्यंत पिछड़े) से हैं।
सवर्ण जातियों की आबादी 16 प्रतिशत है, वहीं दलित आबादी 19 प्रतिशत आबादी है।
भूमिहारों की 2.86 प्रतिशत, ब्राह्मणों की 3.66 प्रतिशत, कुर्मियों की 2.87 प्रतिशत, मुसहरों की 3 प्रतिशत, यादवों की 14 प्रतिशत और राजपूतों की 3.45 प्रतिशत आबादी है।
आरक्षण
जातिगत सर्वे के आधार पर दिया जा रहा 65 प्रतिशत आरक्षण
इस जातिगत सर्वे के आधार पर पिछले साल 9 नवंबर को बिहार विधानसभा ने आरक्षण की सीमा को 65 प्रतिशत तक बढ़ाने वाला विधेयक पारित किया था।
इसके तहत पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण को बढ़ाया गया था। अब बढ़े हुए आरक्षण को धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है।
अगर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) का 10 प्रतिशत आरक्षण भी मिला दिया जाए तो राज्य में अब 75 प्रतिशत हो गया है।