कॉलेजियम: सुप्रीम कोर्ट ने कानून मंत्री के बयान पर जताई आपत्ति, जानें क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के बयान पर आपत्ति जताई है। कोर्ट ने कहा कि किसी बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था और अगर केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति लंबित करती रहेगी तो सिस्टम किस तरह काम कर पाएगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार को जजों की नियुक्ति में अडंगा नहीं डालना चाहिए।
रिजिजू ने क्या कहा था?
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में बोलते हुए किरण रिजीजू ने कहा था कि भारत के संविधान के लिए कॉलेजियम सिस्टम एक एलियन की तरह है और केंद्र सरकार इस प्रक्रिया का सम्मान करती है क्योंकि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत कोई भी न्यायपालिका का अपमान नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसमें कई तरीके की खामियां हैं और यह पारदर्शी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
रिजिजू के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कॉलेजियम कोई निर्णय लेता है तो वरिष्ठता सहित विभिन्न कारणों को ध्यान में रखा जाता है। कोर्ट ने सरकार से कहा, "आप लंबे समय तक नाम लेकर बैठे नहीं रह सकते हैं। आप अपनी आपत्तियों को बताएं बिना नामों को रोक नहीं ले सकते हैं। कई नाम डेढ़ साल से लंबित हैं। एक बार नाम दोहराये जाने के बावजूद इस तरह नाम रोके जाना ठीक नहीं है।"
कॉलेजियम सिस्टम का किया जाए पालन- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम देश का कानून है, तब तक इसका पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि केंद्र सरकार सिफारिशों को नहीं रोकें। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए 11 नामों को मंजूरी नहीं देने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
क्या होता है कॉलेजियम सिस्टम ?
सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे वरिष्ठ जजों के समूह को कॉलेजियम कहा जाता है। यह जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर पर फैसला लेता है। तय नामों को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति इन पर अंतिम मुहर लगाते हैं। 2014 में सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम बनाया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर, 2015 को इसे खारिज करते हुए कॉलेजियम सिस्टम को बहाल कर दिया था।