खनन कंपनियों को राज्यों को देना होगा 2005 से अब तक का टैक्स- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार और खनन कंपनियों को बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि खनिज संपदा पर राज्य टैक्स ले सकेंगे। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि ये वसूली 1 अप्रैल, 2005 से पहले की किसी भी अवधि के लिए लागू नहीं होगी। इस टैक्स पर कोई ब्याज या जुर्माना नहीं लगेगा। बता दें कि 25 जुलाई को कोर्ट ने 8:1 के बहुमत से राज्यों को खनिज संपदा पर टैक्स लगाने का अधिकार दिया था।
कोर्ट ने कई शर्तें भी लगाईं
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कई शर्तें भी लागू की हैं। 5 जुलाई, 2024 से पहले की किसी भी तरह की टैक्स की मांग पर राज्य कोई ब्याज या जुर्माने की मांग नहीं कर पाएंगे। टैक्स के भुगतान का समय 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष से 12 वर्षों की अवधि में किश्तों में देना होगा। खनन कंपनियां 12 साल की किश्त में पैसा दे सकती हैं।
फैसले का खनन कंपनियों पर क्या होगा असर?
इस फैसले के लागू होने से खनिज उद्योग को बड़े पैमाने पर वित्तीय भार का सामना करना पड़ सकता है। कंपनियों को पुराने टैक्स का भुगतान करना होगा, जो उन पर आर्थिक दबाव बढ़ाएगा। यही कारण है कि फैसला आते ही कई खनन कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली है। अब कंपनियों को अपने वित्तीय रिकॉर्ड, पुराने दस्तावेज, लेन-देन की जांच और टैक्स देनदारियों की समीक्षा करनी होगी।
क्यों फायदे में राज्य?
कोर्ट के फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व के खनिज समृद्ध राज्यों को काफी फायदा होगा। राज्य अब पिछले वर्षों के लिए भी टैक्स की वसूली कर सकेंगे। इससे उनके राजस्व में वृद्धि होगी। कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी, अंतरराष्ट्रीय बाजार कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा, खनन क्षेत्र में FDI में बाधा आएगी और भारतीय खनिज महंगा हो जाएगा।
फैसले से खनन कंपनियों के शेयर टूटे
फैसले के बाद खनन कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट आई है। टाटा स्टील का शेयर 3 प्रतिशत टूट गया है। वेदांता का शेयर भी एक प्रतिशत से ज्यादा लुढ़का है। आशापुरा माइनकैम का शेयर 3 प्रतिशत, हिंदुस्तान जिंक का शेयर भी 3 प्रतिशत, ओडिशा मिनरल डेवलपमेंट कंपनी के शेयर में 2 प्रतिशत, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के शेयर 2 प्रतिशत और JSW स्टील के शेयर भी 2 प्रतिशत तक गिर गए हैं।
क्या है मामला?
1989 में सुप्रीम कोर्ट ने इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में माना था कि रॉयल्टी खान अधिनियम के तहत टैक्स का एक रूप है और ऐसी रॉयल्टी पर उपकर लगाना राज्यों की विधायी क्षमता से परे है। हालांकि, जनवरी 2004 में केसोराम मामले में कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया था। हालिया फैसले में कोर्ट ने कहा कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है और राज्यों को खनन तथा खनिज-उपयोग गतिविधियों पर उपकर लगाने का अधिकार है।