सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार को झटका, जातीय जनगणना पर लगी रोक हटाने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही जातीय जनगणना पर हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक को हटाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट का यह आदेश नीतीश कुमार की सरकार के लिए बड़ा झटका है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जातीय जनगणना के मामले में तुरंत दखल देने से इनकार करते हुए हाई कोर्ट को मामले की सुनवाई के निर्देश दिये थे। हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
बिहार सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार द्वारा राज्य में चल रही जातीय जनगणना पर लगी अंतरिम रोक को हटाने के लिए याचिका दायर की गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला अभी पटना हाई कोर्ट में विचाराधीन है और निचली कोर्ट में अगली सुनवाई के बाद ही इस याचिका पर विचार किया जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को तय की है।
पटना हाई कोर्ट में क्या हुआ था?
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल को इस मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की बेंच ने 4 मई को अपना फैसला सुनाते हुए नीतीश सरकार को जातीय जनगणना रोकने के आदेश दिये। कोर्ट ने कहा कि अब तक सरकार द्वारा जो भी डाटा इकट्ठा किया गया है, उसे सुरक्षित रखा जाए। इस मामले पर अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।
याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा था?
याचिकाकर्ताओं ने कहा था, "बिहार सरकार को जातिगत जनगणना कराने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसे रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि ये फैसला संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है और जातीय जनगणना कराने का हक केवल केंद्र सरकार को है।"
बिहार में कब से चल रही थी जातीय जनगणना?
नीतीश सरकार ने 18 फरवरी, 2019 और 27 फरवरी, 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव क्रमशः बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास कराया था, लेकिन केंद्र सरकार को इस पर ऐतराज था। राज्य सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना शुरू कराने का निर्णय लिया और इसका काम जनवरी, 2023 में शुरू हुआ। इसे मई तक पूरा किया जाना था, लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी है।
नीतीश सरकार का जातीय जनगणना के पीछे क्या है तर्क?
जातीय गणना को लेकर पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया था कि सरकार के पास अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और दूसरी जातियों का डाटा उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकार द्वारा नगर निकाय और पंचायत चुनाव में OBC को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जातियों को 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों को 1 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार वह 13 प्रतिशत आरक्षण और दे सकती है।