बिहार: पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर लगाई रोक, नीतीश सरकार को लगा झटका
क्या है खबर?
बिहार में जातीय जनगणना पर पटना हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है, जिससे नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बिहार सरकार द्वारा किए जा रहे जाति आधारित सर्वे से नागरिकों की निजता का हनन हो सकता है और उसके पास जातीय जनगणना का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।
दरअसल, पटना हाई कोर्ट में जातीय जनगणना पर रोक लगाने को लेकर याचिकाएं दायर की गई थीं।
कोर्ट
हाई कोर्ट में 3 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की बेंच ने बुधवार को इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गुरुवार को बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए नीतीश सरकार को जातीय जनगणना रोकने के आदेश दिये हैं। कोर्ट ने कहा कि अब तक जो सरकार द्वारा जो भी डाटा इकट्ठा किया गया है, उसे सुरक्षित रखा जाए।
इस मामले पर अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल देने से किया था इनकार
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रही जातीय जनगणना को रद्द करने के लिए याचिकाएं दाखिल हुई थीं, लेकिन कोर्ट ने तुरंत इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल को इस मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि ये मामला जनहित से जुड़ा है और निचली कोर्ट द्वारा जल्द इसकी सुनवाई कर अंतरिम आदेश दिये जाएं।
जानकारी
याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा था?
याचिकाओं में कहा गया था, "बिहार सरकार को जातिगत जनगणना कराने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसे रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि ये फैसला संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है और जातीय जनगणना कराने का हक केवल केंद्र सरकार को है।"
जातीय जनगणना
बिहार में कब से चल रही थी जातीय जनगणना?
नीतीश सरकार ने 18 फरवरी, 2019 और फिर 27 फरवरी, 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी थी, लेकिन केंद्र सरकार को इस पर ऐतराज था।
राज्य सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया था, जिसका काम जनवरी 2023 से शुरू हुआ था और इसे मई तक पूरा किया जाना था, लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी है।
तर्क
जातीय जनगणना के पीछे राज्य सरकार का क्या था तर्क?
जातीय गणना को लेकर पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया था कि सरकार के पास अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और दूसरी जातियों का डाटा उपलब्ध नहीं है।
राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में OBC को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जातियों को 16 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों को 1 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य सरकार 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है।
मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार बोले- सर्वसम्मति से करवाई जा रही थी जातीय जनगणना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, "बिहार में जाति आधारित गणना सर्वसम्मति से कराई जा रही है। हम लोगों ने केंद्र से इसकी अनुमति ली है। हम पहले चाहते थे कि पूरे देश में जाति आधारित जनगणना हो, लेकिन जब केंद्र सरकार नहीं मानी तो हम लोगों ने जाति आधारित गणना आर्थिक सर्वेक्षण कराने का फैसला लिया है।"
उन्होंने कहा कि इस जनजातीय गणना के आधार पर भविष्य में लोककल्याणकारी नीतियां सरकार द्वारा बनाई जाएगी।