प्रधानमंत्री मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम के विरोध में प्रदर्शनकारी किसानों ने बजाई थालियां
केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' का थाली बजाकर विरोध किया। किसानों ने दिल्ली-हरियाणा के सिंघू बॉर्डर, पंजाब के फरीदकोट और भाजपा शासित हरियाणा के रोहतक में ये विरोध प्रदर्शन किया। इस बीच अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों और किसान आंदोलन का कोई जिक्र नहीं किया और वे स्वदेशी उत्पाद और स्वच्छ भारत अभियान जैसे अन्य मुद्दों पर बोले।
किसानों ने पिछले रविवार को किया था बर्तन बजाकर विरोध करने का ऐलान
किसानों ने पिछले रविवार को प्रधानमंत्री मोदी के रेडियो कार्यक्रम के विरोध में थाली बजाने का ऐलान किया था। इसकी घोषणा करते हुए स्वराज इंडिया के संयोजक योगेंद्र यादव ने कहा था, "27 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री अपना 'मन की बात' रेडियो संबोधन करेंगे तो किसान कहेंगे कि हम आपके मन की बात सुन-सुन कर थक गए हैं और आप हमारी मन की बात कब सुनेंगे? हम बर्तन बजाएंगे ताकि उनके मन की बात का शोर हम तक न पहुंचे।"
किसानों ने प्रधानमंत्री मोदी से ही लिया थाली बजाने का आइडिया
गौरतलब है कि कोरोना वायरस महामारी की शुरूआत में प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से थाली बजाकर अग्रिम मार्चे पर खड़े स्वास्थकर्मियों का शुक्रिया अदा करने के लिए कहा था और किसानों ने वहीं से थाली बजाकर विरोध करने का ये आइडिया लिया है।
अपने कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने नहीं किया किसानों का जिक्र
किसानों के इस विरोध के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में किसानों पर कुछ नहीं कहा और 'लोकल के लिए वोकल' और स्वच्छ भारत जैसे मुद्दों पर बोले। इसके अलावा देश के युवाओं पर भरोसा जताते हुए उन्होंने कहा कि देश के युवाओं में 'कैन डू' और 'विल डू' वाला जुनून है और उनके लिए कोई भी चुनौती बड़ी नहीं है। उन्होंने गुरू गोविंद सिंह के पुत्रों के शहादत दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि भी अर्पित की।
क्यों विरोध कर रहे हैं किसान?
दरअसल, मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लाई है। इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।
असफल रही है पांच दौर की बैठक, 29 दिसंबर को अगले दौर की बैठक
मुद्दे पर सरकार और किसानों के बीच अब तक पांच दौर की औपचारिक और एक बार अनौपचारिक बैठक हो चुकी है। इसके बावजूद अभी तक गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकला है। सरकार कानूनों में संशोधन की बात कह रही है, लेकिन किसान संगठनों की मांग है कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। किसानों और सरकार के बीच 29 दिसंबर को अगले दौर की बातचीत होनी है।
किसानों के साथ-साथ सहयोगियों के दबाव का भी सामना कर रही भाजपा
कृषि कानूनों पर भाजपा की दिक्कतें समय के साथ बढ़ती ही जा रही हैं और उसे किसानों के साथ-साथ अपने सहयोगियों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है। अब तक अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (LJP) मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ चुकी हैं। अकाली दल ने सितंबर तो LJP ने शनिवार को उसका साथ छोड़ा। इसके अलावा हरियाणा सरकार में भागीदार दुष्यंत चौटाला भी भाजपा पर MSP पर कानून लाने का दबाव बना रहे हैं।