निर्भया केस को हुए सात साल, इस दौरान देश में कितना बदलाव आया?
आज देश को झकझोर कर रख देने वाले निर्भया गैंगरेप मामले को सात साल हो गए हैं। 16 दिसंबर की रात को ही 2012 में छह लोगों ने हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए चलती बस में 23 वर्षीय छात्रा का गैंगरेप किया था। मामला सामने आने के दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन हुआ और देशभर में लोग सड़कों पर उतरे थे। तब उम्मीद जगी थी कि इस केस के कुछ बदलेगा, लेकिन क्या सचमुच ऐसा हुआ?
पहले से ज्यादा CCTV कैमरे, बसों में मार्शल तैनात
निर्भया केस के बाद जो चुनिंदा अच्छे बदलाव आए, उनमें पहले से ज्यादा और बेहतर गुणवत्ता के CCTV कैमरे, बसों में पुलिस मार्शलों की तैनाती और अच्छी कनेक्टिविटी आदि शामिल हैं। दिल्ली की 5,558 बसों में कुल 12,895 मार्शल तैनात हैं जिनकी संख्या को और बढ़ाया जाएगा। यात्रियों का कहना है कि वो बस में मार्शल की मौजूदगी से पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। हर हिस्से को सुरक्षित यातायात से जोड़ने के स्तर पर भी सुधार आया है।
शिकायत दर्ज कराने के लिए सामने आ रहीं ज्यादा महिलाएं
इसके अलावा अपने खिलाफ हुए अपराधों की अधिक शिकायत दर्ज कराने के लिए अब पहले के मुकाबले ज्यादा महिलाएं सामने आ रही हैं। ये निर्भया केस के बाद महिलाओं की सोच में आए बदलाव का असर जिसमें वो पहले से ज्यादा सशक्त महसूस करती हैं। पुलिसकर्मियों के संवेदीकरण ने भी इसमें योगदान दिया है। लेकिन सिर्फ इतने बदलाव बाकी हैं, क्या केवल इतने बदलाव के लिए दिल्ली और देश 2012 में सड़क पर उतरे थे?
रेप के मामलों में चार गुना वृद्धि, लेकिन पुलिसकर्मियों की संख्या कम
अगर रेप मामलों की बात करें तो 2011 के बाद से दिल्ली में रेप के मामलों में चार गुना वृद्धि आई है। 2011 में यहां रेप के 572 मामले सामने आए थे, वहीं 2018 में ये आंकड़ा 2,135 तक पहुंच गया। लेकिन इस दौरान पुलिसकर्मियों की संख्या में खास इजाफा नहीं हुआ था। जहां 2011 में दिल्ली पुलिस में 67,000 जवान थे, वहीं 2018 में ये संख्या बढ़कर 80,000 हो गई।
रेप मामलों की जांच करने के लिए मात्र 928 महिला अधिकारी
दिल्ली पुलिस में मात्र 9,793 महिला पुलिसकर्मी हैं, जिनमें से मात्र 928 महिला सब-इंस्पेक्टर रेप के मामलों की जांच करने योग्य हैं। इन महिला अधिकारियों को एक साथ दर्जनों मामले संभालने होते हैं जिनसे जांच की गुणवत्ता प्रभावित होती है। एक महिला पुलिस अधिकारी के अनुसार, "हर पुलिस स्टेशन में रेप के मामलों की जांच करने के लिए मात्र एक या दो महिला अधिकारी हैं। सच्चाई ये है कि दिल्ली पुलिस को अधिक महिला जांच अधिकारियों की जरूरत है।"
15 राज्यों में रेप मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट तक नहीं
दिल्ली ही नहीं पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने में असक्रियता का ऐसा ही हाल है। देश के 15 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश रेप के मामलों में जल्दी से जल्दी न्याय करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने में असफल रहे हैं। जुलाई में केंद्र सरकार ने लंबित रेप और POCSO मामलों को निपटाने के लिए 1,023 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की पहल की थी, लेकिन इन राज्यों ने इसका जवाब तक नहीं दिया।
दिल्ली में भी पर्याप्त फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं
दिल्ली में भी रेप के मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं है। अभी तक दिल्ली में फास्ट ट्रैक कोर्ट अस्थाई होते थे और इसी साल दिल्ली सरकार ने 18 स्थाई फास्ट ट्रैक बनाने का आदेश दिया है।
निर्भया फंड का भी नहीं हो रहा इस्तेमाल
इसके अलावा निर्भया केस के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रोकथाम और उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए निर्भया फंड का भी किसी भी राज्य ने पूरा इस्तेमाल नहीं किया है। यही नहीं महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा और दमन और दीव की सरकारों ने निर्भया फंड से एक भी पैसा खर्च नहीं किया। पिछले पांच सालों में इस फंड के मात्र 20 प्रतिशत हिस्से का उपयोग किया गया है।
क्या सच में देश को झकझोरने में कामयाब रहा निर्भया केस?
ये सारे आंकड़़े बताते हैं कि देश को झकझोर कर रख देने वाला निर्भया गैंगरेप मामला आखिर में कुछ भी झकझोरने में नाकामयाब रहा। कुछ दिन नींद से जागने के बाद अब फिर से उसी पुराने ढर्रे पर चल निकले हैं।