भारत में फरवरी में गर्मी ने तोड़ा 122 सालों का रिकॉर्ड, मौसम वैज्ञानिकों ने जताई चिंता
उत्तर भारत में फरवरी का महीना खत्म होते ही मौसम में गर्मी महसूस होने लगी है। इस बार फरवरी में पड़ी गर्मी ने 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और बीते महीने दिन का औसत तापमान सामान्य से 1.73 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इससे पहले साल 1901 में फरवरी महीने में इतना अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था, जब दिन का औसत तापमान सामान्य से 0.81 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा था।
अगले तीन महीनों में गर्मी की लहर करेगी परेशान- वैज्ञानिक
भारतीय मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक एससी भान के अनुसार, आगामी तीन महीनों के दौरान मई के महीने तक देश के अधिकांश हिस्सों में बेतहाशा गर्मी पड़ने की संभावना है और इस दौरान लोगों को गर्मी की लहर का सामना भी करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत और मध्य भारत के साथ ही उत्तर पश्चिम के इलाकों में मार्च से तापमान में औसत की तुलना में बढ़ोतरी होनी शुरू हो जाएगी।
गर्मी की लहर से प्रभावित राज्यों की संख्या हुई दोगुनी- रिपोर्ट
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। साल 2015 के बाद से देश में गर्मी की लहरों से प्रभावित राज्यों की संख्या साल 2020 तक दोगुनी से अधिक यानी 23 पहुंच गई है। इससे पता चलता है कि बीते सालों में अधिकांश राज्यों में गर्मी के मौसम के तापमान सामान्य से अधिक रहा है और उच्च तापमान के कारण गर्मी की लहर की चपेट में कई राज्य आ चुके हैं।
हर साल बढ़ती गर्मी के कारण कृषि उत्पादकता में पड़ रहा असर
गर्म मौसम की शुरुआत को देखते हुए कृषि मंत्रालय ने गेहूं की फसल पर गर्मी के प्रभाव की निगरानी के लिए एक पैनल का गठन किया है, जिससे उत्पादकता में पड़ने वाले इसके असर का पता लगाया जा सके। बीते साल मार्च के महीने में भी देश ने पिछली एक सदी की सबसे भीषण गर्मी देखी थी, जिसके कारण कई फसलें झुलस गई और सरकार को अनाज के निर्यात पर अंकुश लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहा आर्थिक संकट
जानकारों की मानें तो भारत जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे संवेदनशील देशों में से एक है। हर साल तापमान बढ़ने के कारण यहां गर्मी की लहरें, बाढ़ और सूखा पड़ने के कारण हजारों लोगों को जान गवांनी पड़ती है। हर साल तापमान बढ़ोतरी के कारण आर्थिक कठिनाइयां भी बढ़ती हैं। जलविद्युत के स्रोत सूखने के कारण देश की ऊर्जा आपूर्ति पर बोझ बढ़ता है और जीवाश्म ईंधन की मांग में भी बढ़ोतरी होती है।