कोरोना वायरस: इलाज के लिए प्रभावी दवा बनाने की तरफ एक कदम और आगे बढ़ा भारत
भारत कोरोना वायरस के इलाज के लिए प्रभावी दवा रेमडेसिवीर बनाने की तरफ एक कदम आगे बढ़ गया है। हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी (CSIR-IICT) ने इस दवा के की स्टार्टिंग मैटेरियल (KSMs) को सिंथेसिस कर लिया है। यह किसी दवा के एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट (API) बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम है। साथ ही IICT सिप्ला जैसी कंपनियों के साथ यह तकनीक साझा कर रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर भारत में भी इसका निर्माण हो सके।
गिलियाड साइंसेस के पास है दवा का पेटेंट
गिलियाड साइंसेस कंपनी द्वारा बनाई गई रेमडेसिवीर को अमेरिका में गंभीर रूप से बीमार कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए इस्तेमाल करने की मंजूरी मिली है। गिलियाड के पास इस दवा का पेटेंट है, लेकिन नियमों के मुताबिक रिसर्च कामों के लिए इस दवा का निर्माण किया जा सकता है। रेमडेसिवीर को जब मरीज की नसों में चढ़ाया जाता है तो उसे जल्द आराम मिलता है और वह बीमारी से जल्दी ठीक होता है।
भारत को टेस्ट के लिए मिली 1,000 डोज
भारत कोरोना वायरस के इलाज के लिए चलाए जा रहे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साझा ट्रायल का हिस्सा है और उसे टेस्ट के लिए ऐसी 1,000 डोज मिली हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि IICT ने KSMs की सिंथेसिस कर लिया है और यह तकनीक दवा कंपनियों को दिखाई जा रही है। इलाज के लिए दूसरी प्रभावी दवा फेवीपिरेवीर पर भी क्लिनिकल ट्रायल और संभावित लॉन्चिंग के लिए काम चल रहा है।
जनवरी से चल रहा था काम
IICT के डायरेक्टर डॉक्टर एस चंद्रेशखर ने बताया कि किसी दवा की API तैयार करने के लिए KSM का सिंथेसिस करना जरूरी है। रेमडेसिवीर के KSM भारत में उपलब्ध हैं और केमिकल कंपनियां इनका निर्माण कर सकती है। इसके दूसरे रिएजेंट बाहर से मंगाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा, "जनवरी के आखिर में जब चीन में इसका ट्रायल शुरू हुआ था, हमने तभी से इस पर काम करना शुरू कर दिया था।"
सरकार के पास दवा निर्माण के दो विकल्प
जानकारों का कहना है कि भारत सरकार गिलियाड साइंसेस इस दवा के निर्माण के लिए भारतीय कंपनियों को वॉलेंटियरी लाइसेंस देने की मांग कर सकती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार कंपल्सरी लाइसेंस ऑप्शन इस्तेमाल कर सकती है। इसके तहत सरकार या जेनरिक दवा कंपनी लोगों की जान बचाने के लिए पेटेंट की गई दवा का निर्माण कर सकती है। इसके बदले पेटेंट धारक को सरकार की तरफ से पैसा दिया जाएगा।
इबोला के लिए बनाई गई थी रेमडेसिवीर
रेमडेसिवीर एक न्यूक्लियोसाइड राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) पोलीमरेज इनहिबिटर इंजेक्शन है। सबसे पहले इसका निर्माण वायरल रक्तस्रावी बुखार इबोला के इलाज के लिए किया गया था। फरवरी में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शस डिजीज (NIAID) ने SARS-CoV-2 (कोरोना वायरस) के खिलाफ जांच के लिए रेमडेसिवीर का ट्रायल करने की घोषणा की थी। अब यह ट्रायल सफल होता नजर आ रहा है। इस दवा के उपयोग वाले मरीजों के ठीक होने की रफ्तार 31 प्रतिशत अधिक रही है।
कैसे काम करती है रेमडेसिवीर?
रेमडेसिवीर दवा सीधे वायरस पर हमला करती है। इसे 'न्यूक्लियोटाइड एनालॉग' कहा जाता है जो एडेनोसिन की नकल करता है, जो RNA और DNA के चार बिल्डिंग ब्लॉक्स में से एक है। टेक्सस एएंडएम यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट बेंजामिन नेउमन ने कहा, "वायरस आमतौर पर तेजी से हमला करने की कोशिश करते हैं। रेमडेसिवीर चुपके से एडेनोसिन के बजाय वायरस के जीनोम में खुद को शामिल करता है, जो रेप्लिकेशन प्रोसेस में शॉर्ट सर्किट की तरह काम करता है।"