ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 102वें स्थान पर फिसला, पाकिस्तान से भी बुरी हालत
एक तरफ "नए और चमकते" भारत के सपने दिखाए जा रहे हैं और विकास की नई गाथाएं गढ़ने का वादा किया जा रहा है, दूसरी तरफ मानव विकास के असली पैमानों पर देश की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। 117 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत गिरकर 102वें स्थान पर पहुंच गया है। इस मामले में भारत की हालत पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों से भी खराब है।
जलवायु परिवर्तन का पड़ रहा भूख की स्थिति पर असर
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 2014 से 2018 तक के आंकड़े जुटाए गए हैं। ये मुख्य तौर पर विभिन्न देशों में कुपोषित बच्चों की आबादी, उनमें लंबाई के अनुपात में कम वजन या उम्र के अनुपात में कम लंबाई वाले पांच वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत और पांच वर्ष तक के बच्चे की मृत्यु दर पर आधारित है। रिपोर्ट में बताया गया है जलवायु परिवर्तन के कारण सभी को खाना प्रदान कर पाना मुश्किल होता जा रहा है।
अंकों के आधार पर तय होती है रैंकिंग
सूचकांक में भूख की स्थिति के आधार पर देशों को 0 से 100 अंक दिए गए हैं। जिस देश में भूख की स्थिति नहीं है, उसका स्कोर जीरो होगा, वहीं 100 अंक वाले देशों में सबसे ज्यादा भुखमरी होती है। 20 से 34.9 अंक का मतलब भूख का गंभीर संकट, 35 से 49.9 अंक का मतलब हालत चुनौतीपूर्ण है और 50 या इससे ज्यादा अंक का मतलब है कि वहां भूख की बेहद भयावह स्थिति है।
भारत में भूख का गंभीर संकट
सूचकांक में भारत को 30.3 अंक दिए गए हैं यानि देश में भूख का गंभीर संकट है। भारत को 102वां स्थान मिला है, जबकि 2015 में ये 93वां स्थान था। आर्थिक विकास में भारत से बहुत पीछे पाकिस्तान की स्थिति भी इस मामले में भारत से अच्छी है और वह 94वें स्थान पर है। अन्य पड़ोसियों की बात करें तो बांग्लादेश 88वें, नेपाल 73वें और श्रीलंका 66वें स्थान पर है।
BRICS देशों में भी भारत सबसे पीछे
भारत न केवल दक्षिण एशिया के देशों में सबसे पीछे है, बल्कि BRICS देशों में भी सबसे पीछे है। सूचकांक में दक्षिण अफ्रीका को 59वां, चीन को 25वां, रूस को 22वां और ब्राजील को 18वां स्थान दिया गया है।
6-23 महीने के मात्र 9.6 प्रतिशत बच्चों को मिल पाता है न्यूनतम भोजन
भारत के कारण ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दक्षिण एशिया की स्थिति अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र से भी ज्यादा खराब हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 6 से 23 महीनों के सिर्फ 9.6 प्रतिशत बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकृत भोजन उपलब्ध हो पाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में तो स्थिति इससे भी ज्यादा खराब बताई गई थी। इसमें बताया गया था कि इस आयु वर्ग के केवल 6.4 प्रतिशत बच्चों को न्यूनतम भोजन उपलब्ध हो पाता है।
दुनियाभर में बढ़ी कुपोषित लोगों की संख्या
ग्लोबल हंगर इडेक्स में सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक की स्थिति सबसे खराब है और वहां भूख की स्थिति बेहद भयावह कैटेगरी में आती है। वहीं चाड, मेडागास्कर, यमन और जाम्बिया में भूख की स्थिति खतरनाक है। 117 में से 43 देश भूख की गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में कुपोषित लोगों की संख्या 2015 में 78.5 करोड़ से बढ़कर 2018 में 82.2 करोड़ हो गई है।