उत्तर प्रदेश: ऐसे कैसे होगा कोरोना वायरस से मुकाबला? राज्य में डॉक्टरों की भारी कमी
कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में डॉक्टर सबसे अहम हैं, इस बात पर शायद ही किसी को संदेह होगा। दिन-रात मरीजों का इलाज कर डॉक्टर खुद के "भगवान" होने की कहावत को सही साबित कर रहे हैं। हालांकि, कई राज्यों में खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण डॉक्टरों को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और उत्तर प्रदेश ऐसे ही राज्यों में शामिल है। राज्य में डॉक्टर किन-किन समस्याओं से जूझ रहे हैं, आइए जानते हैं।
उत्तर प्रदेश में यह है स्थिति
उत्तर प्रदेश में अब तक 1,72,334 लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया जा चुका है, जिसमें से 2,733 लोगों की मौत हो चुकी है। कुल संख्या में से 1,21,090 लोगों ने इस वायरस को मात दे दी है, वहीं 48,511 मामले सक्रिय हैं।
कोरोना वायरस महामारी से पहले से ही डॉक्टरों की कमी
सबसे पहले बात करते हैं डॉक्टरों की संख्या की और इस मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति बेहद नाजुक है। राज्य में पहले से ही डॉक्टरों की कमी थी और अब महामारी ने परिस्थितियों को और खराब कर दिया है। प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ (PMHSA) के सचिव डॉ अमित सिंह के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 33,000 विशेषज्ञों और 14,000 MBBS डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन अभी स्थाई पदों पर केवल 3,000 विशेषज्ञ और 8,000 MBBS डॉक्टर तैनात हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 30 प्रतिशत तो सामुदायिक केंद्रों में 82 प्रतिशत पद खाली
2018-19 के ग्रामीण स्वास्थ्य के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) में डॉक्टरों के 30 प्रतिशत और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) में 82 प्रतिशत पद खाली हैं। राज्य के 2,936 PHCs में डॉक्टरों के 4,509 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से 1,329 खाली पड़े हैं। इसी तरह 679 CHCs के लिए स्वीकृत 2,099 पदों में से 1,615 खाली हैं। ग्रामीण इलाकों में तो और बुरी स्थिति है जहां 15.5 करोड़ की आबादी पर मात्र 3,664 डॉक्टर हैं।
डॉक्टरों के संक्रमित होने से और बढ़ी समस्या
डॉक्टरों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने ने डॉक्टरों की कमी को और बढ़ा दिया है। राज्य में अब तक आठ डॉक्टरों की कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हो चुकी है और सैकडों इससे संक्रमित हो चुके हैं। अकेले लखनऊ में महामारी शुरू होने के बाद से अब तक 150 स्वास्थकर्मी संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से लगभग 100 मामले किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में सामने आए हैं जो राज्य का पहला कोविड समर्पित अस्पताल था।
घरवालों से भी दूर हैं डॉक्टर
कोरोना वायरस से संबंधित ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों को न केवल काम के दबाव का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि वे अपने परिवार से भी दूर हैं। कोरोना के मरीजों के बीच ड्यूटी के कारण उन्हें अपने घर जाने से भी डर लगता है और कई-कई हफ्ते वे घर नहीं जाते। डॉक्टरों का कहना है कि वे नहीं चाहते कि रोज-रोज घर जाकर वे उनके परिवार के लिए कोई खतरा पैदा करें।
डॉक्टरों के रिटायरमेंट और इस्तीफे से और विकट हुई स्थिति
वरिष्ठ डॉक्टरों के रिटायरमेंट ने भी कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ रहे डॉक्टरों पर दबाव बढ़ाया है। डॉ अमित सिंह के अनुसार, इस साल लगभग 250 डॉक्टर रिटायर हो चुके हैं और खाली हुए पदों को भरने के लिए कुछ नहीं किया गया है। राज्य में निदेशक, अतिरिक्त निदेशक और संयुक्त निदेशक समेत कई अहम पद खाली हैं और प्रमोशन भी लंबित हैं। अधिकारियों के हस्तक्षेप के विरोध में कई डॉक्टरों के इस्तीफे ने समस्या को और बढ़ाया है।
नहीं हो पा रहा कोरोना वायरस से संबंधित गाइडलाइंस का पालन
डॉक्टरों की इस विकट कमी के कारण अभी जो डॉक्टर कोरोना वायरस संबंधित ड्यूटी पर तैनात हैं, उन्हें दिन-रात काम करना पड़ रहा है और उनकी रविवार की भी छुट्टी नहीं हो रही। डॉक्टरों की कमी के कारण केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइंस का भी पालन नहीं हो पा रहा है, जिनके तहत 300 बेड वाले एक अस्पताल में डॉक्टरों की शिफ्ट छह घंटे की होनी चाहिए और हर शिफ्ट में दो डॉक्टर होने चाहिए।
लंबी चली महामारी तो ढह सकती है राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था
इन सभी परिस्थितियों से साफ है कि अगर उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस मरीजों की संख्या यूं ही बढ़ती रही तो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था ढह सकती है। इन परिस्थितियों से बचने के लिए सरकार को डॉक्टरों के रिक्त पदों को भरने की जरूरत है।